Saturday, 7 December 2024

सुब्ह होती है शाम होती है 

उम्र यूँही तमाम होती है 

मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
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वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर 

आदत इस की भी आदमी सी है 

गुलज़ार
 
  
 
उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद 

वक़्त कितना क़ीमती है आज कल 

शकील बदायूनी
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सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं 

गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं 

मीर हसन
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इक साल गया इक साल नया है आने को 

पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को 

इब्न-ए-इंशा
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जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर 
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते 
इबरत मछलीशहरी
 
 
 
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना 

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है 

बशीर बद्र
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सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें 

क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता


वो आफ़्ताब-ए-हुस्न रहा मरकज़-ए-निगाह 
था देखना मुहाल मगर देखते रहे

That beautiful sun was the center of view. 
Though difficult it was but I kept her in view. 

har chiiz nahīñ hai markaz par ik zarra idhar ik zarra udhar
nafrat se na dekho dushman ko shāyad vo mohabbat kar baiThe

allāh to sab kī suntā hai jur.at hai 'shakīl' apnī apnī
'hālī' ne zabāñ se uf bhī na kī 'iqbāl' shikāyat kar baiThe

SHAKEEL BADAYUNI 

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