इसको बना के क्यूँ मिरी मिट्टी ख़राब की
ज़िया बेग़म ज़िया
*
So downtrodden am I, dust goes places to tell in name.
Why shaped him out of me and put my name to shame.
बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रक्खा
अब कहते हो क्या तुम ने मुझे मार तो रक्खा
Kept captive in tress grief for years alright.
Now claim to have killed me my dears alright.
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की
हाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
No misconduct was done on first night.
Well, my cheek was on his cheek,cheers alright.
इतना भी ग़नीमत है तिरी तरफ़ से ज़ालिम
खिड़की न रखी रौज़न-ए-दीवार तो रक्खा
It is enough O murderer from your side.
Not a window but a hole in wall clears alright.
वो ज़ब्ह करे या न करे ग़म नहीं इस का
सर हम ने तह-ए-ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़्वार तो रक्खा
Whether or not he murders, I won't grieve.
My head over his blooded dagger bears alright
इस इश्क़ की हिम्मत के मैं सदक़े हूँ कि 'बेगम'
हर वक़्त मुझे मरने पे तय्यार तो रक्खा
I am proud of the courage of love, O 'Begham'!
It kept me ready for death, no fears, alright.
BEGHUM LAKHNAVI (Daughter of Mir Taqi Mir)
गुल के होने की तवक़्क़ो पे जिए बैठी है
हर कली जान को मुट्ठी में लिए बैठी है
Hoping to be a flower is each bud.
Keeping life in it's power is each bud.
उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ी
माँगते हैं जो बार - बार शराब!
O bargirl ! With your eyes you scold.
Who ask for drinks so often, are bold.
दिल हो गया है ग़म से तिरे दाग़दार ख़ूब
फूला है क्या ही जोश में ये लाला-ज़ार ख़ूब
My heart is so studded by grief scars.
Proud of bed of garden of Tulip stars.
MAH LAKHA BAI CHANDA, HYDERABAD, 1768
No comments:
Post a Comment