Saturday, 4 January 2025

उम्र ख़य्याम.... रुबाई... भावानुवाद... रेवती लाल शाह..... . रवि मौन

ईं चर्ख़े-फ़लक कि मा दरू हैरानेम
फ़ानूस ख़याल अज़ूमिसाले दानेम
ख़ुर्शीद चिराग़दाँ व आलम फ़ानूस 
मा चूँ सूरेम कन्दरू हैरानेम



ये चर्ख़े-फ़लक जिस पर हैं हम सभी हैराँ
इक सूरत-ए-फ़ानूस ही लगता है ये सामाँ
सूरज चिराग़दान और फ़ानूस सा आलम
हम चित्र हैं दीवार पर और अक्स से रवाँ

Thursday, 2 January 2025

उमर ख़य्याम...... पुस्तक लेखक व भावानुवाद रेवतीलाल शाह.... रुबाई..... रवि मौन

बा नफ़्स हमेशा दर नबर्दम् चि ़कुनम
च ज़ कर्दा-ए- खेशतन बदर्दम् चि कुनम
गीरम कि ज़ मन दर गुज़रानी ब करम
ज़ाँ शर्म कि दीदी चि कर्दम चि कुनम
उमर ख़य्याम 

है जंग जारी नफ़्स से पर क्या करूँ कहो
जलता हूँ अपने कर्म से पर क्या करूँ कहो
कर देगा दर गुज़र, मैं जानता तिरा करम
 शर्मिंदा हूँ तू देखता है मगर क्या करूँ कहो 

रूपान्तरण... रेवती लाल शाह एवम् रवि मौन

जाना मन ओ तू नमूनः-ए-परकारेम
सर गरचः दो कर्दाएम-एक तन आरेम
बर नुक़्ता खानेम कनूँ दायरा वार
ता आख़िरकार सर बहम बाज़ आरेमऐ
उमर ख़य्याम 

जानाँ मैं और तू तो हैं, जैसे होता परकार 
सर तो दो हैं पर यही इक शरीर आकार 
घूम रहे हैं इक घेरे में, बिन्दु वही आधार 
सर भी तो मिल जाएँगे अपने आख़िरकार 

रूपान्तरण.....रेवती लाल शाह एवम्  रवि मौन 

Wednesday, 1 January 2025

राधा-कृष्ण विवाह........ रवि मौन

ब्रह्मा जी ने करवाया था राधा-कृष्ण विवाह। 
दर्शन मन्दिर के करें भर मन में उत्साह।
शुभस्थल है भाण्डीर वन, वट वृक्ष की छाया। 
 श्रीब्रह्मा ने ही चुना औ' निज धर्म निभाया। 
द्वापर युग की यह कृति है वृन्दावन से कुछ दूर।
श्रीराधाजी के विग्रह में दिखे स्पष्ट सिन्दूर।  
ब्रह्म कुण्ड है जहाँ अग्नि के फिर कर चारों ओर। 
 घूमे सात बार राधा संग मुरलीधर चितचोर।
इस दैवी घटना से कितने ही मानव अनजान। 
पढ़िए गर्गसंहिता तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण ।
'मौन' तुम्हारी लेखनी को अब दो विश्राम।
मात सरस्वति की कृपा से हो पाया काम।। 

ग़ज़ल. हाफ़िज़ ईरानी. तर्जुमा. रेवती लाल शाह एवम् रवि मौन

 अलाया ऐ हस्साक़ी इदर का न ब हमफ़िलहा
कि इ'श्क़ आसाँ नमूद अव्वल वले उफ़्ताद मुश्किलहा

सुर्ख़ तल्ख़ मय भर कर मुझको साक़ी दे  प्याला
प्यार लगा आसाँ पहले पर अब मुश्किल  दोबाला

ब बू-ए-नाफ़ः कि आख़िर सबा ज़ तुर्रः बिकुशायद
ज़ ताबे- जा' दे-मुश्कीनश चि ख़ूँ उफ़्ताद दर दिलहा

ये ख़ुशबू नाफ़ की है जब सबा बिखराएगी गेसू
ताब कस्तूरी ज़ुल्फ़ों की जमा दे ख़ून दिल वाला

ज़ि मय सज्जाद रंगीं कुन गर्त पीरे-मुग़ाँ गोयद
कि सालिक़ बेख़बर न बुवद ज़ राहे-रस्में-मंज़िलहा

सज्जादा मय से रंगीं कर तुझे पीरे मुग़ाँ कह दें
कब अनजान रहबर मंज़िल-ओ' दस्तूर ने पाला