Tuesday, 7 January 2025

उमर ख़य्याम.... रुबाई.... पुस्तक लेखक व भावानुवाद रेवतीलाल शाह... रुबाई का पद्यानुवाद... रवि मौन

मादमे ओ-मा'शूक़ दरीं कुंजे-ख़राब
जानो-दिलो-जामः दर रह्ने-शराब
फ़ारिग़ ज़ उम्मीदे-रहमतो-बरिमे-अ'ज़ाब 
आज़ाद ज़ ख़ाको-बादो-आतिशो-आब 

मैख़ाने के इस कोने में मैं, मेरा मा'शूक़, शराब
रह्न जाँ, दिल, जाम रक्खे, पी सकूँ जिस से शराब
हो गया आज़ाद पानी, हवा, आतिश, ख़ाक से
अब न रहमत की तमन्ना और डर जो हों अज़ाब 

1 comment: