मेरे और साक़ी के कुछ अनलिखे अफ़साने हैं
आस जब टूट चुकी हो हर इक, डर लगता है
बंद कमरे में ना सावन का महीना आ जाए
एक जज़्बा है जिसे इश्क़ कहा करते हैं
कौन कह सकता है हममें भी वही न आ जाए
- रवि मौन
#Ravimaun
Poet of Hindi, Urdu, English, Bengali and Punjabi. I also translate gems of Urdu poetry. Orthopedic surgeon.
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
Since long, you are not on my memory tract.
But that I have forgotten you, is not a fact.
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
इस शे’र में एक तरह की दिलचस्प उलझन भी है और इस उलझन में लज़्ज़त भी है। लुत्फ़ की बात ये है कि शायर का महबूब उससे बात भी करता है और उसके पास बैठा भी है। यानी मिलन की स्थिति है। मगर उलझन इस बात की है कि शायर अपने महबूब से बात करे कि वो उसको देखता रहे। यानी वह एक ही समय में तीनों बातों का आनंद उठाना चाहता है। वो अपने महबूब के निकटता भी चाहता है। उसकी बातें सुनके आनंद भी उठाना चाहता है और जब ये कहा कि तुमसे बात करें तो यह स्पष्ट हुआ कि वो अपने महबूब से अपने दिल की बात भी कहना चाहता है। मगर उसे असली खुशी तो महबूब को देखने से ही मिलती है।
You are addressing me from so near.
Should I talk with , or look at you, dear ?
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
What in love, could I achieve ?
You could at least deceive !
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
Neither there was promise, assurance, nor any hope.
But waiting for you was all within my scope.
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
Smoky was the eve' , sad was the eve.
Some stories, memory could perceive.
तारा टूटते सबने देखा, ये न देखा एक नए भी।
किस की आँख से आँसू टपका, किस का सहारा छूट गया ?
All have seen a shooting star, none observed the things at par.
From whose eye has dropped a tear, who has lost support O dear ?
तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएँ
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़
साँस लेती है वो ज़मीन 'फ़िराक़'
जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है
जिस में हो याद भी तिरी शामिल
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
आदमी को आदमी दरकार है
कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
आसमानों को नींद आती है
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ
आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है
शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'
गो ज़िंदगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं