रिन्द सब जा चुके लुढ़के हुए पैमाने हैं
मेरे और साक़ी के कुछ अनलिखे अफ़साने हैं
आस जब टूट चुकी हो हर इक, डर लगता है
बंद कमरे में ना सावन का महीना आ जाए
मेरे और साक़ी के कुछ अनलिखे अफ़साने हैं
आस जब टूट चुकी हो हर इक, डर लगता है
बंद कमरे में ना सावन का महीना आ जाए
एक जज़्बा है जिसे इश्क़ कहा करते हैं
कौन कह सकता है हममें भी वही न आ जाए
- रवि मौन
#Ravimaun
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