Tuesday, 19 January 2016

कवि की कल्पना...

है यह कवि की कल्पना जिसने दिया निखार। 
शब्दों के भ्रमजाल को आज मिला आकार।।
डूबे ख़ुशियों में कभी, रहे कभी ग़मगीन। 
कुछ कर्मों का फल मिला, कुछ विधि के आधीन।।
काल-चक्र चलता रहा कोई सका न रोक। 
नई योनि मिलती रही, मिटे हर्ष और शोक।।
कर्मों का संचय रहा, सदा हमारे साथ। 
दोनों के फ़ल मिलेंगे, जब चाहें रघुनाथ।।
नर नारायण भी यहाँ युद्ध स्थल में जायँ। 
बाँटें गीता ज्ञान को, मानव को समझायँ।।

-रवि मौन  

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