ज़िन्दगी तुझसे बिछड़ के भी तो गुज़री है मगर।
किसको समझाऊँ कि ये कैसे कटा मेरा सफ़र।।
दूर से आती सदा देती है दस्तक दिल पर।
याद आते हैं मुझे झूले ठिठौली वो शजर।।
आसमाँ ऊँचा बहुत, गहरा समन्दर कितना।
दोनों यकरंग ही हैं किसलिए, हैरान बशर।।
इतना शर्मिंदा हूँ इंसान की करतूतों से।
कैसे पहचानूँगा शैतान अगर आया नज़र।।
यूँ तो इक उम्र मेरी बीती है कस्बे में "मौन" ।
मुझको भूली नहीं है गाँव की सुनसान डगर।।
- रवि मौन
१६-१०-'१५
किसको समझाऊँ कि ये कैसे कटा मेरा सफ़र।।
दूर से आती सदा देती है दस्तक दिल पर।
याद आते हैं मुझे झूले ठिठौली वो शजर।।
आसमाँ ऊँचा बहुत, गहरा समन्दर कितना।
दोनों यकरंग ही हैं किसलिए, हैरान बशर।।
इतना शर्मिंदा हूँ इंसान की करतूतों से।
कैसे पहचानूँगा शैतान अगर आया नज़र।।
यूँ तो इक उम्र मेरी बीती है कस्बे में "मौन" ।
मुझको भूली नहीं है गाँव की सुनसान डगर।।
- रवि मौन
१६-१०-'१५
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