मैं समझाता हूँ अश्कों को तुम्हारी याद आने पर।
यूँ दिल को छोड़ कर आँखों में आ जाया नहीं करते।।
ज़माना क्या कहेगा क्यूँ हमें परवाह हो इसकी।
हमारे ज़ख्म आकर लोग सहलाया नहीं करते।।
न मय जब छोड़ पाए तो कहा ये हमसे उस बुत ने।
कि हम बुज़दिल को अपने ख़्वाब में लाया नहीं करते।।
यूँ ख़ुश्बू की तरह फैले तुम्हारे हुस्न के चर्चे।
हमें डर है सभी अम्बर सा सरमाया नहीं करते।।
-रवि मौन
०९-०१-२०१५
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प्रेरणा:
यही काँटे तो कुछ खुद्दार हैं सहने गुलिस्ताँ में।
जो शबनम के लिए दामन को फैलाया नहीं करते।।
यूँ दिल को छोड़ कर आँखों में आ जाया नहीं करते।।
ज़माना क्या कहेगा क्यूँ हमें परवाह हो इसकी।
हमारे ज़ख्म आकर लोग सहलाया नहीं करते।।
न मय जब छोड़ पाए तो कहा ये हमसे उस बुत ने।
कि हम बुज़दिल को अपने ख़्वाब में लाया नहीं करते।।
यूँ ख़ुश्बू की तरह फैले तुम्हारे हुस्न के चर्चे।
हमें डर है सभी अम्बर सा सरमाया नहीं करते।।
-रवि मौन
०९-०१-२०१५
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प्रेरणा:
यही काँटे तो कुछ खुद्दार हैं सहने गुलिस्ताँ में।
जो शबनम के लिए दामन को फैलाया नहीं करते।।
(-अनजान)
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