प्रभु मोहे उतराई मत दीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
दीनानाथ, दयानिधि, सियवर, तीन लोक के स्वामी।
मैं हूँ मूरख जनम-जनम को, तुम तो अन्तर्यामी।
सेवा सुख से मन की गागर भरी... न रीती कीजे।
प्रभु मोहे उतराई मत दीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
स्वारथ के हित मैंने स्वामी, गंगा पार कराई।
भवसागर के पार मुझे, करवा देना रघुराई।
देना ही है तो हे दाता, फिर से दर्शन दीजे।
प्रभु मोहे उतराई मत दीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
दीनानाथ, दयानिधि, सियवर, तीन लोक के स्वामी।
मैं हूँ मूरख जनम-जनम को, तुम तो अन्तर्यामी।
सेवा सुख से मन की गागर भरी... न रीती कीजे।
प्रभु मोहे उतराई मत दीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
स्वारथ के हित मैंने स्वामी, गंगा पार कराई।
भवसागर के पार मुझे, करवा देना रघुराई।
देना ही है तो हे दाता, फिर से दर्शन दीजे।
प्रभु मोहे उतराई मत दीजे।
मात मेरो तनिक मान रख लीजे।
-रवि मौन
१२-०१-१९९० एवं ०३-०९-१९९१
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