रवि मौन की मधुशाला - १९
हानि-लाभ की कब चिन्ता करता कोई पीनेवाला।
जीना-मरना लगा रहेगा, कहता है हर मतवाला।
हाथ पकड़ ले साक़ी, इस आशा में डगमग करता है।
कुछ मद्यप आते हैं यूँ ही, नित्य टहलते मधुशाला।।
हानि-लाभ की कब चिन्ता करता कोई पीनेवाला।
जीना-मरना लगा रहेगा, कहता है हर मतवाला।
हाथ पकड़ ले साक़ी, इस आशा में डगमग करता है।
कुछ मद्यप आते हैं यूँ ही, नित्य टहलते मधुशाला।।