रवि मौन की मधुशाला - १४
मिट्टी से ही निर्मित मानव, मिट्टी से निर्मित प्याला।
नभ से झरे कि दृग से, दोनों ही कहलाती हैं हाला।
भेंट वायु से पथ में होती, जब वह नीचे आती है।
मद्यप की आत्मा साक़ी है, जहां मिलें सब, मधुशाला।।
मिट्टी से ही निर्मित मानव, मिट्टी से निर्मित प्याला।
नभ से झरे कि दृग से, दोनों ही कहलाती हैं हाला।
भेंट वायु से पथ में होती, जब वह नीचे आती है।
मद्यप की आत्मा साक़ी है, जहां मिलें सब, मधुशाला।।
मिट्टी से ही निर्मित मानव , मिट्टी से निर्मित प्याला।
दोनों में आकर्षण क्यों है अब समझा साकीबाला।
योद्धा लड़ते समरांगण में क्यों कि प्रेम मिट्टी से है।
छलकी है प्याले से हाला इसी प्रेम में मधुशाला।
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