रवि मौन की मधुशाला - १७
सुख दुःख की सीमा के बाहर, ले जाता चौथा प्याला।
चौथेपन में यह गुरुमंत्र सीख पाया साक़ी बाला।
चौथे चन्द्रोदय को व्रत रत पत्नि प्रतीक्षा करती है।
तेरे आँगन में न आज आ पाऊंगा मैं मधुशाला।।
सुख दुःख की सीमा के बाहर, ले जाता चौथा प्याला।
चौथेपन में यह गुरुमंत्र सीख पाया साक़ी बाला।
चौथे चन्द्रोदय को व्रत रत पत्नि प्रतीक्षा करती है।
तेरे आँगन में न आज आ पाऊंगा मैं मधुशाला।।
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