रवि मौन की मधुशाला - १८
भ्रमित हुआ मन कलकल सुन जब मधुघट से ढलकी हाला।
तन्मय हो कर नाच रहा था जाने क्यों पीने वाला।
प्रमुदित हो कर साक़ी उसको अपने पास बुलाती है।
मद्यप के इस भाग्योदय से विस्मित सी है मधुशाला।।
भ्रमित हुआ मन कलकल सुन जब मधुघट से ढलकी हाला।
तन्मय हो कर नाच रहा था जाने क्यों पीने वाला।
प्रमुदित हो कर साक़ी उसको अपने पास बुलाती है।
मद्यप के इस भाग्योदय से विस्मित सी है मधुशाला।।
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