Thursday, 29 September 2016

GHAZAL... FAIZ... NAHEEN NIGAAH MEN MANZIL...

नहीं निगाह में मंज़िल, तो जुस्तजू ही सही। 
नहीं विसाल मयस्सर, तो आरज़ू ही सही।
Let there be search, if no goal is in sight. 
If there is no meeting, desire is alright. 
न तन में ख़ून फ़राहम, न अश्क आँखों में।
नमाज़े शौक़ तो वाजिब है, बेवजू ही सही। No blood is in body, no tear in the eyes. 
Even when unwashed, the prayer is alright. 
किसी तरह तो जमे बज़्म मयकदे वालो। 
नहीं जो बादाओ साग़र, तो हा औ हू ही सही। 
Let there be gathering in the wine house. 
If there isn't drink, noise 'n tussle it might. 
गर इंतज़ार कठिन है, तो तब तलक ऐ दिल। 
किसी के वादा ए फ़र्दा की गुफ़्तगू ही सही। 
If waiting is tough, till then O heart. 
Let's talk one' s 'morrow' s promise, it's plight. 
दयारे ग़ैर में मरहम नहीं अगर कोई। 
तो 'फ़ैज़' ज़िक्रे वतन, अपने रूबरू ही सही। 
If there's no balm in foreign land O 'Faiz'. 
Let 's discuss the motherland, out of sight. 

 

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