Wednesday, 28 September 2016

दास्ताने इश्क़ - गज़ल


दास्ताने इश्क़ वो भी कह गये।
शर्म से आँखें झुकीं चुप रह गये।

चश्मे तर बैठे हैं हम तुम रूबरू।
हाय वो आँसू जो यूँ ही बह गये।

याद कर कर के तेरी कुछ शोख़ियाँ।
हादसे हम उम्र भर के सह गये।

हम कहानी सुन रहे थे ग़ैर की।
कौन जाने अश्क कैसे बह गये।

डाल से पत्ता गिरा एक टूट कर।
झूमते थे हम सहम कर रह गये।

दिल धडकना छोड़ देगा हमनवा।
आप भी गर गै़र हो कर रह गये।

ज़िंदगी  इतनी  बड़ी  भी  तो  नहीं।
कहिये यूँ क्यूँ 'मौन' हो कर गये।

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