Thursday, 31 December 2020

QAABIL AJMERII...6.. COUPLETS

तुम न मानो मगर हक़ीक़त है।
इश्क़ इंसान की ज़रूरत है। 

You may disagree but it's fact indeed. 
Love  is an obvious human need. 

अब ये आलम है कि ग़म को भी ख़बर होती नहीं। 
अश्क बह जाते हैं लेकिन आँख तर होती नहीं। 

Such is the srate that sorrow doesn't know. 
Eyes do not get wet but tears still flow. 

बहुत काम लेते हैं दर्द-ए-जिगर से। 
कहीं ज़िन्दगी को क़रार आ न जाए! 

A lot does pain of heart police. Let not my life get any peace! 

वक़्त करता है परवरिश बरसों। 
हादसा एक दम नहीं होता ! 

For years, it is fostered by the time. 
Calamity  does not  suddenly chime! 

तज़ाद-ए-जज़्बात में ये नाज़ुक मक़ाम आया तो क्या करोगे ? 
मैं रो रहा हूँ तुम हँस रहे हो, मैं मुस्कुराया तो क्या करोगे ? 

In contradictory emotions if there comes a delicate state, what 'll you do ? 
I am crying, you are laughing, if I start smiling, then what will you do ? 

रास्ता है कि कटता जाता है। 
फ़ासला है कि कम नहीं होता।

Route - cutting is produced.
But distance isn't reduced.

बहुत काम लेते हैं दर्द- ए- जिगर से।
कहीं ज़िन्दगी को क़रार आ न जाए। 

With pain of heart many works happen. 
If life gets comfort, well what then?


Saturday, 26 December 2020

सालगिरह 2020

सालगिरह पर घूमने पुडुचेरी प्रस्थान। किया समन्दर तट भ्रमण, कैसे करूँ बखान।
चक्रवात के चक्र में फँसे, रहे बेचैन। 
वापस चलते, बाँह पर गिर गया बोनट आन।
दर्द बहुत था, पर चली गाड़ी घंटे पाँच।
बरसा सारे रास्ते भर जुल्मी अस्मान।। 

Thursday, 24 December 2020

AARZOO LAKHNAVI.....15..... couplets.

हाथ से किसने साग़र पटका मौसम की बेकैफ़ी पर।
इतना बरसा टूट के बादल, डूब चला मय-ख़ाना भी।

On dull weather, who has thrown the wine - cup so far. 
Clouds burst, there were rains to submerge even the bar.

खिलना कहीं छुपा भी है चाहत के फूल का। 
ली घर में साँस और गली तक महक गई।

Blossoming of love - flower, no one can contain.
Breathe inside  home, scent spreads across the lane.

जो कुछ न था कहने का, सब कह गया दीवाना। 
समझो तो मुकम्मल है, अब इश्क़ का अफ़साना। 

Mad man has said even what he could delete. 
If you understand, the love story is complete.

हर साँस है एक नग़्मा, हर नग़्मा है मस्ताना।
किस दर्जा दुखे दिल का, रंगीन है अफ़साना।

Each breath is a song, song with drink replete. 
How colourful is  heart tale gone through deceit.

वाए ग़ुर्बत, कि हुए जिस के लिए ख़ाना ख़राब। 
सुन के आवाज़ भी घर से न वो बाहर निकले।

Alas! This poverty, for whom I 've got desolate and roam.
Listening to my voice, didn't even come out of home.

मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है।
बढ़ी जब बे-ख़ुदी फिर कौन डरता है गुनाहों से।

It's impossible in love, for thought of good' n bad to sneak.
Who is afraid of sins, when intoxication is at it's peak.

ख़िज़ाँ का भेस बदल कर बहार ने मारा। 
मुझे दो-रंगी-ए-लैल-ओ-बहार ने मारा। 

In disguise of autumn, I suffered spring's plight. 
In spring, I was hurt by  colours of day 'n night. 

शौक़ चढ़ती धूप, जाता वक़्त घटती छाँव हे। 
बावफ़ा जो आज हैं, कल बेवफ़ा हो जाएँगे।

Ardour is rising sunlight, time regressing shade. 
Those faithful today, will tomorrow faith evade. 

वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे। 
जिसे आता है दिल देना उसे हर काम आता है। 

I 'll be faithful, suffer pain out of the grace chart. 
He knows everything who knows how to give heart. 

इश्क़ में सौ बार नाला आ के लब पर रह गया। 
बात अकेले की नहीं थी दो दिलों का राज़ था। 

A hundred times cry stopped short of lips. 
It wasn't tale of one but two heart slips. 

पुकारती है न दरवाज़ा खटखटाती है। 
बड़े घमंड से याद उस की दिल में आती है। 

Neither it calls nor knocks door side. 
Her memory enters the heart with pride.

कुछ तो मिल जाए लब- ए - शीरीं से।
ज़हर खाने की इजाज़त ही सही। 

Something from sweet lips at least.
Permission for the poison to feast.

जैसे हम सूरत आशना ही नहीं !
सदक़े इस मुँह छुपा के जाने का। 

As if I don't recognise your face
Bless the way you cover your face.

तेरा तो ढंग है वही अपना बना के छोड़ दे
वो भी बुरा है बावला जो तुझ को पा के छोड़ दे। 

Your style is the same, leave after making own. 
He too is a fool, who to you, can disown.

ख़ामोशी मेरी मअनी-ख़ेज़ थी ऐ 'आरज़ू' कितनी।
कि जिस ने जैसा चाहा वैसा अफ़साना बना डाला। 

O 'Arzoo' meaningful to many, was my silence.
As per wish, each erected his own fence. 

केनोपनिषद... व्याख्याकार... स्वामी चिन्मयानन्द ... हिन्दी पद्यानुवाद

शान्तिपाठ
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।। 
ॐ शान्तिः! शान्तिः! !शान्तिः!!!

शिक्षक, विद्यार्थी रहें रक्षित ॐ सदैव। 
आनन्दित हों, आपकी खोज साथ कर देव।
तन मन से कोशिश करें समझें गहरे भेद। 
तेजस्वी हों औ' सफल, हो न परस्पर भेद।। 

ॐ करें रक्षा, दैवी विपदाओं से हो शान्ति! 
घटनाएँ जो क्रूर हों, उनसे भी हो शान्ति!! 
दैविक बाधा से मिले, हम दोनों को शान्ति!!! 

ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः  श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि। 
सर्वं ब्रह्मौपनिषदं माहं ब्रह्म निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोद् निराकरणमस्त्वनिराकरणं मेऽस्तु तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्तेमयि सन्तु मे मयि सन्तु।। 

ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!! 

पुष्ट अंग हों, इंद्रियों में शक्ति का संचार। 
सभी तो है ब्रह्म, जो है उपनिषद का सार। करूँ मैं, न ब्रह्म मुझको कभी अस्वीकार। 
आनन्दित हों आत्मसात कर उपनिषदों का सार।। 

ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!! 

..... प्रथम खण्ड.... 

ॐ केनेषितं पतति प्रेषित मनः। 
केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः । 
केनेषितं वाचमिमां वदन्ति चक्षुः 
श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति।। 1।।
 
ॐ! आलोकित मन करे ,है किस का आदेश। 
प्राण वायु आ जा रही, है किस का निर्देश।
बोलें नर जब शब्द, हों किस इच्छा आधीन। 
आँख नाक देखें सुनें, किस विधि के आधीन।। 1।।

श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद्वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य
प्राणश्चक्षुषश्चक्षुरतिमुच्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति।। 2।।

मन का मन ,वाणी की वाणी और कान का कान। 
आँख की है आँख ,है वह प्राण का ही प्राण। 
उठ सके इन्द्रिय जगत से, तज सभी अनुराग। 
धीर हो अमृत ,करे जब अहम् का भी त्याग।। 2।।

न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो
न विद्मो न विजानीमो तथैतदनुशिष्यादन्यदेव
तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्वयाचचक्षिरे।। 3।।

आँख वाक् न मन उसे, समझ सके न जान। 
कैसे फिर समझा सके उसको जो अनजान। 
है अलग वह ज्ञान से, ऊपर बहुत अज्ञान से। 
अगम है ऐसा सुना है, पूर्वजों ने ध्यान से।। 3।।

यद्वाचानभ्युदितं येन वागभ्युद्यते। 
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।। 4।।

शब्द प्रकट न कर सकें, जो वाक् को करता प्रकट। 
न उपासना है ब्रह्म, बस चैतन्य है उसके निकट। 
चित् प्रवाहित उज्ज्वलित, केवल है आत्म प्रभाव से। 
जो चाहता है प्लवित कर दे सत्य के हर भाव से। 

यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम्। 
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।। 5।।

जिस की वजह से मन समझता, मन स्वयं न समझ सके। 
केवल वही है ब्रह्म,  न कि उपासना से समझ सके। 

यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति। 
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।। 6।।

देखे न जिस को आँख पर जिस की वजह से देखती। 
नहीं सिर्फ पूजा विधि वरन है आत्म तो केवल यही। 

यच्छ्रोत्रेण न श्रृणोति येन श्रोत्रमिद ँ श्रुतम्। 
यदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।। 7।।

जिसे कान न सुन सकें जिस से सुनते कान। 
यही ब्रह्म है तू पूजक को ब्रह्म रहा क्यों मान। 

यत्प्राणेन न प्राणित येन प्राणः प्रणीयते। 
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।। 8।।......।। इति प्रथमः खण्डः।। 

प्राण वायु ले जिस से न कि जिस को श्वास दे। 
केवल वही है ब्रह्म न कि जो पूजा कर रहे। 
बुद्धि इन्द्रिय मन करें चेतन्य से ही काज सब। 
केवल वही है ब्रह्म साधक जान इस को आज अब। 
शब्द हैं सीमित न करते इस से अधिक बखान। 
यह छाया है ब्रह्म की अब कर अनुसंधान।। 8।।...प्रथम खण्ड समाप्त। 

........ द्वितीय खण्ड....... 

यदि मन्यसे सुवेदेति दहरमेवापि नूनम् ।त्वं वेत्थ ब्रह्मणो रूपं यदस्य देवेष्वथ नु 
मीमा ँ' स्यमेव ते मन्ये विदितम्।। 1।।

शिष्य अगर है धारणा, हुआ ब्रह्म का ज्ञान
यह देवों का ज्ञान है ब्रह्म का तनिक भान। विचरण कर तू अपने अंदर अंतःकरण निहार। 
है जो मैं का आवरण उस को तनिक उतार। 
है आलोकित आत्म यह परम सत्य से जान। 
परम सत्य को शब्द से कैसे करें बखान। 
साधक अपनी भक्ति से करता रहे प्रयास। तब जा कर छुटता कहीं मैं पर से विश्वास। हो जाता है जब उसे परम सत्य आभास। 
तब साधक करता रहे हर पल यह अहसास। 

नाहं मन्ये सुवेदेति नो न वेदेति वेद च। 
यो नस्तद्वेद तद्वेद नो न वेदेति वेद च।। 2।।

ना जानूँ अच्छी तरह ना हूँ मैं अनजान। 
जाने भी जाने नहीं  हम में उस को ज्ञान।
जब यह माना है नहीं मुझको पूरा ज्ञान। 
सत्य कथन से हो रहा परम सत्य का भान। 
तब कहता ऐसा नहीं सब कुछ है अज्ञात। 
मैं 'भी' इस को जिमि संतन को ज्ञात। 

यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः। 
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानतम्।। 3।।

जो समझे मैं जानता उस को है अज्ञात। 
जो समझे जानूँ नहीं उसे परमसत ज्ञात। 
बाह्य जगत का बोध इन्द्रियों के कारण ही हो पाता है। 
मैं को मैं पन को छोड़े तब ही अंतर्मन को पाता है। 
धीरे-धीरे आत्म के निकट पहुँचता आन। 
प्रभु प्रभाव औ'पराभक्ति से सके स्वयं को जान। 
साधक करता अथक साधना जागृत ज्ञान चक्षु हो जाता। 
और इसी से वह साधक अपने को परम सत्य को पाता। 

प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वं हि विन्दते ।
आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम्।। 4।।

माध्यम अन्तर्ज्ञान है इससे लेता सब कुछ जान। 
सच्ची शक्ति मिले आत्मा से विद्या से अमृत का दान। 
भँवर उठे ज्यों जल समूह में वैसे उठें विचार। 
जन्में बढ़ते करें नृत्य फिर हो जाता संहार। आत्मा की ही झलक से होता इनका भान। 
साक्षी है आत्मा स्वयं उसे अछूता जान। 
जागृत सुप्तावस्था औ' स्वप्नावस्था तीन। 
देखे साक्षी की तरह आत्मा रहे अलीन। 
इस साक्षी को जिस समय साधक ले पहचान। 
मैं औ' मैं पन सब मिटें बाह्य जगत के भान। 
इससे है आनन्द सत्य है साक्षी इस को जान। 
स्वयं और आत्मा मिलें परे ज्ञान अज्ञान। 

इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः। 
भूतेषु भूतेषु विचित्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति।। 5।।

यदि जान ले मानव शरीर से, ब्रह्म को इस बार ही। 
जो कुछ भी पा सकता, मिला, उसका हुआ उद्धार ही। 
जाना कि मैं हूँ आत्मा, औ' देह नश्वर है यहाँ । 
वह पा गया अमृतत्व को, अब देह की चिंता कहाँ ? 
मानव जनम में जो न समझा, देह देही भेद । 
गई निरर्थक योनि यह, माँ श्रुति करतीं खेद । 
........ द्वितीय खण्ड समाप्त....... 

ब्रह्म ह देवेभ्यो विजिग्ये
तस्य ह ब्रह्मणो विजये देवा अमहीयन्त।। 1।।

ब्रह्म ने दानव विजय की देव उल्लासित हुए। 
यह विजय दिखला रही है श्रेष्ठ योद्धा देव ही। 

त एक्षनतास्माकमेवायं विजयोऽ-
स्माकमेवायं महिमेति ।
तद्वैषां विजज्ञौ तेभ्यो ह प्रादुर्वभूव
तन्न व्यजानत किमिदं यक्षमिति।। 2।।

देव जीते युद्ध में था ब्रह्म का आभार। 
जीते हैं दानव सभी गर्वित देव अपार। 
सोचा देवों की विजय महिमा अपरम्पार। 
हर्षित गर्वित देव थे सत्य से निराधार 
प्रकट हुए आकाश में ब्रह्म यक्ष के रूप। 
देवों ने देखा न था ऐसा ब्रह्म स्वरूप। 

तेऽग्निमब्रुवञ्जातवेद एतद् विजानीहि
किमिदं यक्षमिति तथेति।। 3।।

जा कर पता लगाइए अग्निदेव ये कौन? 
माने अग्नि कि देख लें 
शक्तिपुञ्ज ये कौन? 

तदभ्यद्रवत्तमभ्यवदत् कोऽसीति अग्निर्वा
अहमस्मीत्यब्रवीज्जातवेदा वा अहमस्मीति।। 4।।

द्रुत गति से जा अग्नि ने देखा यक्ष महान। 
कहा यक्ष ने कौन हो? जातवेद पहचान! 

तस्मिंस्त्वयि किं वीर्य मित्यपीदं सर्वं
दहेयं यदिदं पृथिव्यामिति।। 5।।

शक्ति कितनी आप में जब यक्ष ने पूछा वहीं। 
जो कुछ जहाँ है जगत में मैं भस्म कर सकता वहीं 

तस्मै तृणं निदधावेतद्दहेति। 
तदुपप्रेयाय सर्वजवेन तन्न शशाक दग्धुं
स त्त एव निववृते। 
नैतदशकं विज्ञातुं यदेतद्यक्षमिति।। 6।।

तब एक तिनका सामने रख कर कहा कि जलाइए। 
मैं देख लूँ क्षमता तुम्हारी इसे जला दिखाइए। 
निज शक्ति पूरी लगा दी पर तृण जला तब भी नहीं। 
तो अग्नि लौटे कह दिया मैं जान कुछ पाया नहीं। 

अथ वायुमब्रुवन्वायवेतद् विजानीहि
किमेतद्यक्षमितितथेति।। 7।।

जानेकैसी शक्ति है यह अंबर में आज। 
वायुदेव जा कीजिए देवों का यह काज। 

तदभ्यद्रवत्तमभ्यवदत्कोऽसीति वायुर्वा
अहमस्मीत्यब्रवीन्मातरिश्वा वा अहमस्मीति।। 8।।

जा कर देखा यक्ष को पूछा उस  ने कौन? 
वायु देव हूँ मैं कहा गर्व सहित फिर मौन।

तस्मिंस्त्वयि किं वीर्यमित्यपिदं
सर्वमाददीय यदिदं पृथिव्यामिति।। 9।।

क्या कर सकते हैं उन्हें यक्ष कहें मुस्काय। 
अपने वेग प्रचण्ड से दूँ मैं शैल गिराय। 

तस्मै तृणं निदधावेतदादत्स्वेति तदुपप्रेपाय
सर्वजवेन तन्न शशाकादातुं स त्त एव निववृते नैतदशकं विज्ञातुं यदेतद्यक्षमिति।। 10।।

तिनका रख कर यक्ष ये बोलें मुझे दिखायँ
पूर्ण शक्ति औ वेग से इसको तनिक हिलायँ।
असफल हो लौटे कहा मैं न सका कुछ जान। 
देवों ने की प्रार्थना इन्द देव से आन। 


अथेन्द्रमब्रुवन्मघवन्नेतदद्विजानीहि
किमेतद्यक्षमिति तथेति तदभ्यद्रवत्तस्मात्तिरोदधे।। 11।।


यक्ष हुए अदृश्य खोजते जहँ तहँ देवाधीश। 
वहीं दिखीं तब हिमसुता उमा दिया आशीश। 


स तस्मिन्नेवाकाशे स्त्रियमाजगाम
बहुशोभमानामुमां हैमवतीं
तांहोवाच किमेतद्यक्षमिति।। 12।। 


यक्ष हुए अदृश्य खोजते जहँ तहँ देवाधीश
वहीं दिखीं तब हिमसुता उमा दिया आशीश।
पूछा उन से कौन थीं दिव्य शक्ति इस स्थान। 
परमशक्ति थीं इस जगह यक्षरूप में आन। ।। इति तृतीय खण्डः।। 

।। अथ चतुर्थ खण्ड।। 

सा ब्रह्मेति होवाच
ब्रह्मण वा एतद्विजये महीयध्वमिति
ततो हैव  विदाच्चकार ब्रह्मेति।। 1।।

इन्द्र उन्ही की शक्ति से देव भये बलवान। 
विजय उन्ही की थी जिसे अपनी लीनी मान। 

तस्माद्वा एते देवो अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्ते
ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पृशुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदाच्चकार ब्रह्मेति।। 2।।

विजय हमारी थी रही देवों की ही शान। 
गर्वभंग के वास्ते यक्ष रूप धर आन। अग्नि वायु और इन्द्र ने लेकिन किया प्रयास। 
इसीलिए तो ब्रह्म के पहुँचे इतने पास। 

तस्माद्वा इन्द्रोऽतितरामिवान्यान्देवान्स
ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्श
स ह्येनत्प्रथमो विदाच्चकार ब्रह्मेति।। 3।।

इन्द्र उत्तम अन्य देवों से निकट सबसे गए। 
वे प्रथम थे जान पाए ब्रह्म सतत प्रयास से

तस्यैष आदेशो
यदेतद्विद्युततो व्यद्युतदा 3 इतीन्न्यमीमिषदा 3 इत्यधिदैवतम् ।। 4।।

इस कथा के रूप में यह ब्रह्म का विस्तार था। 
क्षण भर चमक विद्युत सदृश ही ब्रह्म साक्षात्कार था। 

अथाध्यात्मं यदेतद्गच्छतीव च मनोऽनेन
चैतदुपस्मरत्यभीक्ष्णंसङ्कल्पः।। 5।।

जब विचार हो शांत इक उठता अन्य विचार। 
है क्षणांश इस मध्य में जब नहीं कोई विचार। 
वही समय है सत्य के होता है नर पास । 
आत्मा साक्षात्कार का होय सहज आभास। 

यद्ध तद्वनं नाम तद्वनमित्युपासितव्यं
स य एतदेवं वेदाभि हैनं
सर्वाणि भूतानि संवाञ्छन्ति।। 6।।

जो उपासक कर रहा है शांत मन से भक्ति को। 
शुद्ध होता मन व पाता स्वयं ही उस शक्ति को। 

उपनिषदं भो ब्रूहित्युक्ता त उपनिषदब्राह्मी
वाव त उपनिषदमब्रूमेति।। 7।।

गुरुवर मुझ को दीजिए उपनिषदों का ज्ञान। 
शिष्य कर चुका मैं तुम्हें सारा ज्ञान प्रदान।

तस्यै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा
वेदाः सर्वाङ्गानि सत्यमायतनम्।। 8।।

तप दम कर्म स्तम्भ हैं वेद ज्ञान अनुदान। वेद स्वयं शाखा रहीं अंतिम सत्य स्थान। 

यो वा एतामेवं वेदापहत्य पाप्मानमनन्ते
स्वर्ग लोके ज्येये प्रतितिष्ठति प्रतितिष्ठति 
।। 9।।

इस तरह जो जान लेता उपनिषद के ज्ञान को। 
पाप मिट जाते मिले वह ब्रह्म से सम्मान को। 

इति चतुर्थ खण्ड। 

शान्ति पाठ... आरंभ की भाँति..... 























TO ADDY WITH LOVE

Coincidental are Christ's and your date of birth.
Not only us, christian world is also full of mirth. 
May God give all you want 'n grant your schemes.
May you occupy a class, all beyond our dreams. 
..
.. Ravi Maun.....

May God grant, all you want, give Philip to your schemes.
Your name' n fame, tame 'n claim well beyond our dreams..

Wednesday, 16 December 2020

AMIIR MIINAAI.. GHAZAL.. US KI HASRAT HAI JISE DIL SE MITAA BHII NA SAKUUN...

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ।
ढूँढने उसको चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ। 
Unfulfilled desire that I can't wipe from core. 
Going in her search, whom I can't procure.

डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा। 
कुछ ये मेंहदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ। 

Covering my blood with dust,  assassin said.
This isn't henna, that I can't obscure. 

ज़ब्त कम-बख़्त ने याँ आ के गला घोंटा है।
कि उसे हाल सुनाऊँ, तो सुना भी न सकूँ।

Control has throttled me at this site.
Even if I want, can't tell her love-lore.

नक़्शे पा देख तो लूँ, लाख करूँगा सजदे। सर मिरा अर्श नहीं है, जो झुका भी न सकूँ।

Let me see footsteps, 'll genuflex  lac times.
My head isn't sky, that I can bend no more.

बेवफ़ा लिखते हैं वो, अपने क़लम से मुझ को। 
ये वो क़िस्मत का लिखा है कि मिटा भी न सकूँ। 

By her own pen," faithless" I' ve  been named.
That's my fate. I can't wipe the score. 

इस तरह सोए हैं सर रख के मिरे ज़ानू पर। 
अपनी सोई हुई क़िस्मत को जगा भी न सकूँ। 

With her head on my thighs, she has slept.
I can't awake my sleeping fate anymore. 

Tuesday, 15 December 2020

NASIR KAZMI.. GHAZAL.. TIRE AANE KAA DHOKAA HO RAHAA HAI

तिरे आने का धोका हो रहा है।
दिया सा रात भर जलता रहा है।

 A trick that you've come, is in sight. 
As if a lamp is glowing all night. 

अजब है रात से आँखों का आलम। 
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है। 

This stream is waxing all along. 
Strange is state of eyes all night. 

सुना है रात भर बरसा है बादल। 
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है। 

That city, which keeps thirsty still. 
It's heard, clouds've rained all night. 

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का। 
जो पिछली रात से याद आ रहा है। 

He was a friend of good old days, 
Whose memory keeps coming all night. 

किसे ढूँढोगे अब गलियों में 'नासिर'? 
चलो अब घर चलें, दिन जा रहा है। 

O 'Nasir' whom'll you search in lanes? 
Let's go home, day goes off light. 




NASIR KAZMI.. GHAZAL.. NIYYAT E SHAUQ MAR N JAAY KAHIIN...

निय्यते शौक़ मर न जाए कहीं।
तू भी दिल से उतर न जाए कहीं। 

Intention to love may not die.
From my heart, you may untie. 

आज देखा है तुझ को देर के ब'अद। 
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं। 
I saw you after so long, today. 
This day may not just pass by. 

न मिला कर उदास लोगों से। 
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं। 

Do not mingle with sad men. 
Your beauty may just spill by. 

आरज़ू है कि तू यहाँ आए। 
और फिर उम्र भर न जाए कहीं। 

It's a desire that you come here
And stay for life, don't say bye. 

जी जलाता हूँ और सोचता हूँ। 
रायगाँ ये हुनर न जाए कहीं। 

I burn my heart and so think. 
This art may not waste and die.

अभी कुछ और रो ही लें 'नासिर'। 
फिर ये दरिया उतर न जाए कहीं। 

O'Nasir'! Weep a little more. 
This stream may wane, 'n dry. 




NASIR KAZMI.. GHAZAL.. APNI DHUN MEN RAHTAA HUUN...

 अपनी धुन में रहता हूँ।
मैं भी तेरे जैसा हूँ। 

In my ardour, I have flown. 
I am like you, now've known.

ओ पिछली रुत के साथी। 
अब के बरस मैं तन्हा हूँ। 

O pal of weather bygone. 
This year, I am all alone.

तेरी गली में सारा दिन। 
दुःख के कंकर चुनता हूँ। 

Day long, in your lane O mate! 
I gather pebbles of sad tone. 

मुझ से आँख मिलाए कौन? 
मैं तेरा आईना हूँ। 

Who can have the guts to see? 
I am your mirror, well shown. 

मेरा दिया जलाए कौन ? 
मैं तिरा ख़ाली कमरा हूँ। 

Who will light my lamp? 
I am your room, so lone. 

तू जीवन की भरी गली। 
मैं जंगल का रस्ता हूँ। 

You are lane, full of life. 
I am jungle path, so lone. 

आती रुत मुझे रोएगी। 
जाती रुत का झोंका हूँ। 

Weather to come, 'll cry for me. 
I am waft of air, bygone. 

अपनी लहर का अपना रोग। 
दरिया हूँ और प्यासा हूँ। 

Each wave ails for itself. 
 Sea is thirsty, can not moan. 




Sunday, 13 December 2020

NASIR KAZMI.. GHAZAL.. DIL DHADAKNE KA SABAB YAAD...

दिल धड़कने का सबब याद आया।
वो तेरी याद थी अब याद आया। 

The reason of heart throb, I now recall. 
It was your memory, I now recall.

आज मुश्किल था संभलना ऐ दोस्त। 
तू मुसीबत में अजब याद आया। 

Today, it was difficult to keep balance. 
It's strange, in trouble to you I recall. 

दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से। 
फिर तिरा वादा - ए - शब याद आया।

With a lot of trouble, day was passed. 
Your promise to meet at night I recall. 

तेरा भूला हुआ पैग़ाम- ए- वफ़ा।
मर रहेंगे मगर अब याद आया। 

That long forgotten letter of faith. 
Will die for sure, if now I recall.

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे।
फिर कोई शहर- ए- तरब याद आया।

Many persons have passed in view. 
Your city of music, I now recall.

हाल- ए- दिल हम तो सुनाते लेकिन।
जब वो रुख़सत हुआ तब याद आया। 

I could talk about state of heart. 
When he left,then could I recall. 

बैठ कर साया- ए- गुल में 'नासिर'।
हम बहुत रोए वो जब याद आया। 

In the shade of flowers O 'Nasir'.
I wept a lot for her, I recall. 

Friday, 11 December 2020

NASIR KAZMI.. GHAZAL.. DIL MEN IK LAHAR SII UTHII HAI..

दिल में इक लहर सी उठी है अभी।
कोई ताज़ा हवा चली है अभी। 

As if from heart, a wave has flown now. 
As if some fresh breeze has blown now.

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी। 
और ये चोट भी नई है अभी।

I am a very sensitive person too. 
This hurt is so fresh known now.

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में।
कोई दीवार सी गिरी है अभी। 

In my heart, there's a lot of noise.
As if a wall's collapsed in cyclone now.

भरी दुनिया में जी नहीं लगता। 
जाने किस चीज़ की कमी है अभी। 

 Heart doesn't settle in whole world.
What's it lacking that I still groan now.

तू शरीक- ए- सुख़न नहीं है तो क्या?
हमसुख़न तेरी ख़ामुशी है अभी। 

What if you aren't involved in verse.
Agreeable is your silence as stone now.

याद के बेनिशाँ जज़ीरों से। 
तेरी आवाज़ आ रही है अभी। 

From the trace less memory islands, 
Your voice to my ears has flown now. 

शहर की बे चिराग़ गलियों में। 
ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी। 

In these lamp less lanes of the city. 
Life still looks for you as wishbone now.

सो गए लोग उस हवेली के। 
एक खिड़की मगर खुली है अभी। 

 All persons of that home have slept. 
But an open window is still known now. 

 तुम तो यारो अभी से उठ बैठे। 
शहर में रात जागती है अभी। 

O friends! You have stood so early. 
Night in the city is full grown now. 

वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'। 
ग़म न कर , ज़िन्दगी पड़ी है अभी। 

  O Nasir, good times will also come. 
Life still remains, don't moan now. 




Wednesday, 9 December 2020

NASIR KAZMI.. GHAZAL.. TUU JAB MERE GHAR AAYA THA...

तू जब मेरे घर आया था।
मैं एक सपना देख रहा था। 


When to my home your had gone. 
I was lost in deep dream zone.

पहली बारिश भेजने वाले।
मैं तिरे दर्शन का प्यासा था। 

O sender of the very first rain. 
Of your look I was thirsty to bone. 

चाँद की धीमी धीमी ज़ौ में। 
साँवला मुखड़ा लौ देता था। 

In light glow of the moon. 
Blue black face had shone. 

शाम का शीशा काँप रहा था। 
पेड़ों पर सोना बिखरा था। 

Trembling was the evening mirror. 
On the trees gold was thrown. 

जगमग जगमग कंकरियों का।
दश्ते फ़लक में जाल बिछा था।

Of the pebbles, shining, twinkling. 
On  sky jungle, net was thrown. 

दिन का फूल अभी जागा था। 
धूप का हाथ बढ़ा आता था। 

  Day flower had just got up. Hand of sunlight had grown. 

  धूप के लाल हरे होंटों ने। 
तेरे बालों को चूमा था। 

 By the red green lips of sun. 
Your tresses were kissed atone

दिल को यूँ ही रंज है वर्ना। 
तेरा मेरा रिश्ता क्या था? 

Heart's sad for nothing, or else
No relation in us had grown. 

तन्हाई मिरे दिल की जन्नत। 
मैं तन्हा हूँ, मैं तन्हा था। 

 Solitude is heaven of heart.
 I am alone, I was alone. 
 










Tuesday, 8 December 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. AAS HOGI NA AASRA HOGA..

आस होगी न आसरा होगा।
आने वाले दिनों में क्या होगा?

Neither a hope nor guard for some. 
What 'll be there in times to come?

मैं तुझे भूल जाऊँगा इक दिन। 
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा। 

Some day I will forget you.
Time'll change the total sum.

नाम हमने लिखा था आँखों में। 
आँसुओं ने मिटा दिया होगा। 

I wrote my name in her eyes.
With tears what can be outcome.

कितना दुश्वार था सफ़र उस का। 
वो सरे शाम सो गया होगा। 

His travel must have been tough. 
Who slept before njght had come. 

पतझड़ों की कहानियाँ पढ़ना। 
सारा मंज़र किताब सा होगा। 

It will be a book scene. 
Just learn stories of autumn. 

 आसमाँ भर गया परिन्दों से।
पेड़ कोई हरा गिरा होगा। 

A green tree must have fallen. 
Sky has birds to fill vacuum. 

Sunday, 6 December 2020

AHMAD FARAZ.. GHAZAL.. SUNA HAI BOLE TO BAATON..

सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं 
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं। 

Flowers flow down as she speaks, it's said.
If such is the case, let's talk, go ahead. 

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं। 
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं। 

People look at her open eyed, it's said. 
Let me stay in her city for few days 'n tread. 

सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है। 
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं।

That moon keeps gazing at her all night. 
Stars leave high skies 'n watch instead.

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं। 
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं। 

 Glow worms look at her face at night.
Butterflies trouble her at day, it's said. 

बस इक निगाह से लुटता है कारवाँ दिल का। 
सो रहरवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं। 
The caravan of heart is lost by a look. 
Fellow travellers of desire see  her in dread. 

सुना है उस की  सियहचश्मगी क़यामत है 9८  ै 

सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है। 
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं। 
That the flowers split their covers to watch. 
The cuts of her body are so shapely, it's said.

सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखें।
सुना है उसको हिरन दश्त भर के देखते हैं। 

Her deer eyes cast a spell of the doom. 
All deers of the jungle keep looking unfed. 

सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी।
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं। 

Her tress are said to be longer than night. 
Shadows glide by to see  as eve' is lead. 

सुना है उस के शबिस्ताँ से मुत्तसिल है बहिश्त।।
 मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं। 

Heaven is so near her night abode. 
Those living there oogle this way instead. 

सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से। 
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं। 

Has affinity for those whose state is bad. 
So I'll also ruin myself, well ahead. 

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी। 
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं। 

Her graceful eyes have a passion for pain. 
So I 'll also through her lane tread. 

सुना है उसको भी है शे' र-ओ-शायरी से शगफ़। 
सो हम भी मोजिज़े अपने हुनर के देखते हैं। 

She too is known to have ardour for verse. 
So, wonders of my verse can also be read. 

सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं। 
सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं। 

Roses are envious, scorched by her lips. 
So let's frame the blame on spring instead. 

सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में। 
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गुहर के देखते हैं। 

Since the time they adorn her neck. 
Mood of rubies, pearls is so special instead. 

सुना है उस की सियह - चश्मगी क़यामत है। 
सो उस को सुरमा फ़रोश आह भर के देखते हैं। 

Her dark eyedness is the day of resurrection. 
Kohl sellers sigh looking at her, it's said. 

बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला
 दिल का। 
सो रहरवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं। 
The gathering of heart is lost by a look. 
Fellow travellers of desire see her in dread. 

सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त - ए-इम्काँ में। 
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैं। 

A forest  of possibilities is for thoughtful eye. 
Panthers look at the angle of her waist ahead. 

वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं। 
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं। 
She is tall 'n graceful with fulfilling flowers. 
On that tree, buds see fruit overhead. 

किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे। 
कभी-कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं। 

Who has fortune to see her undressed. 
At times, wall' n windows to this view are fed. 

कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सही। 
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं 

May be these are stories, exaggerated state. 
If it's a dream, to fulfilment it be lead. 

अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ। 
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं। 

Whether to stay in her city or move. 
O 'Faraz' have stars of travel well read. 



Thursday, 3 December 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. JATE HO TO LE JAO YAADEN BHI....

जाते हो तो ले जाओ यादें भी मेरे दिल से। इन शम्ओं का क्या रिश्ता उजड़ी हुई महफ़िल से।

While you leave from heart take memories of your name.
What relation is between deserted gathering 'n flame.

इस बार सफ़र से हम किस शान से लौटे हैं। 
माँ बाप ने पहचाना हम को बड़ी मुश्किल से। 

Even my parents recognised me with trouble. 
This time I am back from the journey with fame. 

सूरज से बचाएँगे बादल के जज़ीरे क्या। 
तुमने भी ज़मीं माँगी बहते हुए साहिल से

How islands of clouds 'll save from sun? 
From floating bank how land you can claim. 

अंजान सी राहों में मैं इस लिए फिरता हूँ। 
आवाज़ हमें देगा शायद कोई मंज़िल से। 

Someone  will call me from the goal. 
I roam on unknown roads with this aim. 

दिल फूलों की बस्ती है और फूल भी यादों के। 
इक रात यहीं ठहरो जाओ न अभी दिल से। 

Heart's a town of flowers 'n that too of memories. 
Stay for a night, don't leave the heart O dame. 

ज़िंदाँ के अंधेरे भी तारीक नहीं होते। 
किरनें भी चमकती हैं नग़माते सलासिल से। 

Darkness of prison isn't all that bleak. 
Sparks also come from verse chains that tame. 
 




Wednesday, 2 December 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. TEER NAZRON KE TO PALKON KI....

तीर नज़रों के तो पलकों की कमाँ रखते हैं।
उनकी क्या बात है फूलों की ज़ुबाँ रखते हैं। 

On bows of eyebrows, sight arrows explore. 
What to tell, she has flowery tongue to score. 

हम तो आँखों में सँवरते हैं वहीं सँवरेंगे। 
हम नहीं जानते आईने कहाँ रक्खे हैं। 

I've dressed in your eyes, will dress there. 
I know not where mirror is kept 
In store. 

अपने क़ातिल भी उसी रोज़ से शर्मिंदा हैं।
हम भी ख़ामोश बहुत अपनी ज़ुबाँ रक्खे हैं। 

My assassin's are also ashamed since then. 
My tongue too is quiet, speaks no more. 

 दिल कभी रेत का साहिल नहीं होने देते। 
हम ने महफ़ूज़ वो क़दमों के निशाँ रक्खे हैं। 

I have  those delicate footprints
My heart can't become a sandy shore. 

जिन पे तहरीर हैं बचपन की मुहब्बत अपनी। 
अब मिरे घर के वो दरवाज़े कहाँ रक्खे हैं।

Where are those doors of my home. 
On which is scrolled childhood love-lore. 





BASHIR BADR.. GHAZAL.. AANSUON SE DHULI KHUSHI...

आँसुओं से धुली ख़ुशी की तरह।
रिश्ते होते हैं शायरी की तरह। 

Washed with tears of pleasure. 
Relations are poetic composure. 

हम ख़ुदा बन के आएँगे वरना। 
हम से मिल जाओ आदमी की तरह। 

I'll come in the form of God.
Or meet me as man at leisure. 

बर्फ़ सीने की जैसे जैसे गली। 
आँख खुलती गई कली की तरह।

As the ice in chest melted. 
Eyes opened as buds exposure.

जब कभी बादलों में घिरता है। 
चाँद लगता है आदमी की तरह। 

Whenever clouds surround it. 
Moon's a man made to measure. 

किसी रोज़न किसी दरीचे से। 
सामने आओ रोशनी की तरह। 

Through some door or window
Come as light from embrasure. 

सब नज़र का फ़रेब है वरना। 
कोई होता नहीं किसी की तरह।

It's simply a fault of vision. 
None's like other in measure. 

 ख़ूबसूरत उदास ख़ौफ़ज़दा ।
वो भी है बीसवीं सदी की तरह। 

Beautiful, sad, frightened. 
She's twentieth century, it's measure. 

जानता हूँ कि एक दिन मुझको। 
वो बदल देगा डायरी की तरह। 

I know some day as a diary. 
He will change me at leisure. 


Monday, 30 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. KHUSH RAHE YA BAHUT...

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे।
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे। 

Very sad or all cheer. 
Life be around you dear. 

वो नहीं है तो उसकी आस रहे। 
एक जाए तो एक पास रहे। 

Let desire be if she's far.
One goes, other is near.

जब भी कसने लगा उतार दिया। 
इस बदन पर कई लिबास रहे।

Whenever felt tight, put off. 
Many clothes, this body did wear.

घुल गए अपनी बदनसीबी में।
वो सितारे जो मेरे पास रहे।

My iIl fate dissolved them.
Stars that were my peer. 

आज हम सबके साथ ख़ूब हँसे। 
और फिर देर तक उदास रहे। 

I laughed a lot with others. 
 Then sad for long O dear. 

दोनों एक दूसरे का मुँह देखें। 
आईना आईने के पास रहे। 

Let us look at each other.
Let the mirrors be near. 

Sunday, 29 November 2020

BASHIR BADR ....GHAZAL..SAR JHUKAOGE TO PATTHAR......

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा। 
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा। 

Even stone 'll be God, if you bow the head.
She' ll turn disloyal, if with love overfed.

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है। 
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा। 

I am a stream, well aware of my skill. 
Wherever I move, a course 'll be tread. 

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया। 
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा। 

If you aren't mine, someone else will be. 
To me, how honestly, life has said. 

मैं ख़ुदा का नाम ले कर पी रहा हूँ दोस्तो। 
ज़हर भी इस में अगर होगा, दवा हो जाएगा। 

O pals! I am drinking in the name of God. 
Even poison in it, will raise me from dead. 

सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, जमीनो आस्माँ। 
मैं जहाँ भी जाऊँगा उसको पता हो जाएगा। 

His are air, fragrance, earth and sky. 
He'll come to know, wherever I tread. 


Tuesday, 24 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. MANZIL PE HAYAAT AKE...

मंज़िल पे हयात आ के ज़रा थक सी गई है।
मालूम ये होता है बहुत तेज़ चली है। 

Reaching goal, life has a tired look. 
Probably, it moved like a speedy brook. 

शाहिद शबे हिजराँ है तिरा ज़िक्र हुआ था 
ऐ मौत भली आई तिरी उम्र बड़ी है। 

Night of parting is witness to your tale. 
O death! Thanks for the trouble you took.

अब अंजुमने नाज़ से वहशत का सबब क्या?
शायद मुझे तन्हाईए शब ढूँढ रही है।

Why gathered dictates need a lunatic?
For me, lonely night has a searching look.

बीमार के चेहरे पे सवेरे की सफ़ेदी। 
ख़ाक बदहन अब ये चिराग़े सहरी है। 

Patient's face looks pale since morn'. 
This morning star has a dwindling look. 

ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे हो। 
अल्लाह करे झूट हो बहोतों से सुनी है। 

By God! Be a lie,it is commonly heard. 
You are bad at heart, with a lovely look. 

ता हद्दे नज़र शहरे ख़मोशाँ के निशाँ हैं। 
अल्लाह मुसाफ़िर की कहाँ शाम हुई है! 

As far vision goes, there's 
 streach of graves. 
O God! Traveller's evening is in this nook! 

हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे।
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है। 

I have roamed in Delhi and Lahore as well. 
My love! Your lane has  your own look. 

वो माथे का मतला हो कि होठों के दो मिसरे। 
बचपन से ग़ज़ल ही मिरी महबूब रही है। 

Opening lines of forehead or a couplet of lips. 
Since childhood, ghazal as girlfriend, I took. 

ग़ज़लों ने  वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए। जिन राहों पे देखा कि बहोत धूप कड़ी है। 
Ghazals stretched tresses to cast their shade. 
Wherever they saw, sun has a scorching look. 


 

Monday, 23 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. ANKHON MEN RAHA DIL....

आँखों से रहा दिल में उतर कर नहीं देखा।
किश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा।

It stayed in the eyes, didn't get down to heart. 
Boat traveller didn't see the ocean from start. 

बे वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे। 
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा। 

All'll be surprised if I suddenly get in. 
Since long, home was not on day chart. 

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है। 
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।

My eyes have not looked upon milestones. 
I have focused on goal from the day of start. 

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं। 
तुमने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा। 

These flowers have just been inherited by me. 
You didn't gaze at thorns on my sleeping cart. 

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला। 
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा। 

My lover states that I am a stone. 
I am wax, she hasn't touched from start. 

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें। 
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा। 

Whether ancestral land or lover's lane. 
Never looked back what I left from heart. 


BASHIR BADR.. GHAZAL.. AGAR TALASH KAROON KOI...

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा।
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा। 

If I look for, someone will be found. 
But, who 'll have your love profound?

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा। 
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा। 

Someone' ll look at you with desire.
Sans my eyes, how will he look around?

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो।
मकान ख़ाली हुआ है कोई तो आएगा। 

Who knows, when your heart gets a fresh knock.
For a vacant house, new tenant 'll be found.

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ। 
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा। 

As a wall, I am blocking my own way. 
If she comes, which way will she be bound?

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है। 
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा। 

This weather is angelic in your company. 
On parting, all pleasures it will impound. 

Friday, 20 November 2020

ABDUL HAMIID ADAM. GHAZAL.. HANS KE BOLA KARO BULAYA KARO...

हँस के बोला करो बुलाया करो ।
आप का घर है आया जाया करो। 

Talk and call with a smile. 
It's your house, come all the while. 

मुस्कुराहट है हुस्न का ज़ेवर। 
मुस्कुराना न भूल जाया करो। 

Smile is an ornament of beauty. 
Please don't forget to smile. 

हद से बढ़ कर हसीन लगते हो। 
झूठी क़समें ज़रूर खाया करो। 

Looking limitlessly lovely. 
Always promise with a guile.

ताकि दुनिया की दिलकशी न घटे। 
नित नए पैरहन में आया करो। 

To maintain attraction of world
Use new garments, new style. 

कितने सादा मिज़ाज हो तुम 'अदम' ।
उस गली में बहुत न जाया करो। 

O 'Adam'! You are simple natured. 
Don't pass her lane all the while

Wednesday, 18 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. WOH PYASE JHONKE BAHUT........ na

 वो प्यासे झोंके बहुत प्यासे लौट जाते हैं। जो दूर दूर से बादल उड़ा के लाते हैं।

Those gusts of wind remain thirsty when back. 
Which bring dark clouds from far on track.

कोई लिबास नहीं दिल की बे लिबासी का
अगरचे रोज़ नई चादरें चढ़ाते हैं।

No dress is there for the naked heart. 
Daily new sheets are spread from pack. 

ये बात क्यों कही मुझ से सुकूते दरया ने। 
चराग़ पानी में अक्सर बहाए जाते हैं। 

Why did silent stream tell it to me? 
Lit lamps are often set on water track. 

सितारे खोए हुए बच्चे हैं जिन्हें अक्सर। 
वो साथ खेले हुए दोस्त याद आते हैं। 

Stars are lost kids, who often remember. 
Friends with whom they played long back. 

पुकार उट्ठे मुसाफ़िर को जैसे चाँद नगर। 
कि ख़ुफ़्ता जिस्म कभी यूँ भी जाग जाते हैं। 

Naughty bodies get awake from sleep. 
As the moon city calls a traveller back. 

लरज़ रहे हैं सितारे सहर की आँखों में। 
चमन के शबनमी रुख़सार थरथराते हैं। 

Stars are shivering in morning eyes. 
Dewy cheeks of garden tremble en pack. 

 हमारे शे'र गुनाहे ज़मीं का वो नग़्मा।
जिसे फ़लक के फ़रिश्ते भी गुनगुनाते हैं। 

My couplets are stories of earthly sins. 
Even angels hum these ïn their track. 

क़सीदा हुस्न का और हुस्न को सुनाओगे 
बताओ फूल को ख़ुशबू कहीं सुँघाते हैं। 

An ode to beauty recited to beauty. 
Flowers made to smell a fragrant pack. 

सितारा बन के भटकते हैं सारी सारी रात। जो वादा करके वफ़ा करना भूल जाते हैं। 

Those who promise and forget to fulfill. 
Turn stars to wander at night, lose track. 

तिरा सुकूत हैअक्सर तहइअरे नग़्मा ।
ख़ामोश रह के भी ये होंट गुनगुनाते हैं। 

Your peace is often a wonderful poem. 
Even when silent, lips hum on track. 

मैं दिन हूँ मेरी जबीं पर दुखों का सूरज है। दिए तो रात की पलकों पे झिलमिलाते हैं।

I am day with sun of pain on forehead. 
Lamps glisten on night's eyelash pack. 

जला रहा है सितारों को इंतज़ार मिरा। 
मगर वो अश्क जो पलकों पे थरथराते हैं। 

Stars get burnt while waiting for me. 
But eyelash tears keep trembling back. 

उन्हीं के पास मिलेंगे कई नवादरे ग़म। 
वो काफ़ले जो रहे दिल पे आते जाते हैं। 

Antique pain will be found with them. 
Caravans that traverse heart track. 

गुलाब सा वो बदन क्या हवाए दर्द में तो
घने दरख़्तों के जंगल भी सूख जाते हैं। 

Not delicate rose body, even dense jungle trees. 
Get dried when the winds of pain attack. 

ख़ुशा ये कद्र तो है इस उदास नस्ल के पास। 
उदास भी जो न होंगे वो लोग आते हैं। 

Though sad, this generation upholds vaue. 
Even they come, who aren't a gloomy pack. 








As the moon city calls a Traveller back. 





Monday, 16 November 2020

QATEEL SHAFAAI.. GHAZAL.. IK KHAAS HAD PE AA GAEE JAB TERI BERUKHII....

इक ख़ास हद पे आ गई जब तेरी बेरुख़ी। नाम उसका हमने गर्दिश - ए-अय्याम रख दिया। 

When your being alien had reached it's peak. 
I called it by name of fate, it's span. 

इंसान और देखे बग़ैर उसको मान ले। 
इक ख़ौफ़ का बशर ने ख़ुदा नाम रख दिया। 

Humans don't accept before having seen. 
It's fear that's been named God by man.

क्या मस्लेहत-शनास था वो आदमी 'शकील' ।
मजबूरियों का जिसने वफ़ा नाम रख दिया। 

O 'Qateel'! He must have been geius of a man. 
Who compiled compulsions in fidelity scan. 



Sunday, 15 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. SATH CHALTE JA RAHE HAIN...

साथ चलते जा रहे हैं पास आ सकते नहीं।
इक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं। 

We walk together but are still alone. 
We are sides of a river with distance thrown. 

देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज़ में। 
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं।

The Giver has given in a strange way. 
World lies in front, can't pick a stone. 

उसकी भी मजबूरियाँ हैं मेरी भी मजबूरियाँ। 
रोज़ मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं। 

Helplessness is with her and me. 
Daily we meet, can't let it be known. 

किसने किस का नाम ईंटों पर लिखा है ख़ून से। 
इश्तिहरों में ये दीवारें छुपा सकते नहीं।

Who has written with blood whose name. 
Can't hide from posters of these walls shown. 

राज़ जब सीने से बाहर हो गया अपने यहाँ। 
रेत पर बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं।

When secret has come out of chest. 
From the sand, can't pick tears thrown. 

आदमी क्या है गुज़रते वक़्त की तस्वीर है। 
जाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं। 

Man is but a snap of passing time. 
You can't call back one who's gone. 

शहर में रहते हुए हमको ज़माना हो गया। 
कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं। 

Since long Iam staying in this city. 
Who lives where, to me is unknown. 

उस की यादों से महकने लगता है सारा बदन। 
प्यार की ख़ुशबू को सीने में छुपा सकते नहीं। 

Her memories make my body fragrant. 
You can't hide the smell of love grown. 

पत्थरों के बर्तनों में आँसुओं को क्या रखें। फूल को लफ़्ज़ों के गमलों में खिला सकते नहीं। 

How to keep tears in pots of stone. 
Flowers in word pots can't be grown. 


BASHIR BADR.. GHAZAL.. SIYAHIYON MEN BANE....

सियाहियों में बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं।
ये लोग रात में काग़ज़ कहाँ भिगोते हैं। 

Washing every word off it's yoke. 
Where at night, people papers soak. 

किसी की राह में दहलीज़ पर दिए न रखो
किवाड़ सूखी हुई लकड़ियों के होते हैं।

Don't keep alit the lamps on doorway. 
Doors are made of dry wood O bloke !

चराग़ पानी में मौजों से पूछते होंगे।
ये कौन लोग हैं जो कश्तियाँ डुबोते हैं।

Lamps ask waves while afloat. 
Who sink ship with one stroke.

 उन्हीं में खेलने आती हैं बेरया रूहें।
वो घर जो लाल हरी दफ़्तियों के होते हैं।

Pure souls come to play in these. 
Homes made of papery red green lights stock. 

क़दीम क़स्बों में कैसा सुकून होता है।
थके थकाए हमारे बुज़ुर्ग सोते हैं। 

How peaceful are our old towns!
Tired ancestors rest evoke. 

चमकती है कहीं सदियों में आँसुओं से ज़मीं ।
ग़ज़ल के शे'र कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं। 

In centuries, this land glows with tears. 
Ghazal couplets daily do not stoke. 

BASHIR BADR. GHAZAL.. US KI CHAHAT KI CHANDANI......

उस की चाहत की चाँदनी होगी।
ख़ूबसूरत सी ज़िन्दगी होगी।

Moonlit glow of her desire.
A beautiful life we aspire. 

एक लड़की बहुत से फूल लिए। 
दिल की दहलीज़ पर खड़ी होगी। 

 A lovely dame with lot of flowers. 
Standing on a hearty attire. 

चाहे जितने चिराग़ गुल कर दो। 
दिल अगर है तो रोशनी होगी। 

You may sniff out many lamps.
With heart, there will be fire. 

नींद तरसेगी मेरी आँखों को। 
जब भी ख़्वाबों से दोस्ती होगी। 

My eyes 'll long for sleep. 
When dreams befriend this ire. 

हम बहुत दूर थे मगर तुम ने। 
दिल की आवाज़ तो सुनी होगी। 

We were very far away but still
Heart sounds were heard sans wire. 

सोचता हूँ कि वो कहाँ होगा। 
किस के आँगन में चाँदनी होगी। 

I often think, where will she be
Lighting which home with her fire. 

Friday, 13 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. QADAM JAMANA HAI AUR...b

क़दम जमाना है और साथ साथ चलना भी।
हम अपनी राह का पत्थर हैं और दरिया भी। 

I have to set feet, then walk their way.
I am alone on the path and stream in sway. 

बहुत ज़हीन ओ ज़माना शनास था लेकिन।
वो रात बच्चों की सूरत लिपट के रोया भी। 

He was intelligent and knew the world. 
At night, wept, clung child like as they say. 

ये ख़ुश्क शाख़ न सरसब्ज़ हो सकी उसने।
मुझे गले से लगाया पलक से चूमा भी। 

This dry twig could not turn green. 
Though he embraced and kissed his way. 

चिराग़ जलने से पहले हमें पहुँचना है। 
ढके हुए है पहाड़ों को आज कोहरा भी। 

We have to reach there before lamps are lit. 
Although there is fog on the hills today. 

हज़ारों मील का मंज़र है इस नगीने में। 
ज़रा सा आदमी दरिया है और सहरा भी। 

A view of thousand miles is in this gem.
A little man is stream and desert in play.

वही शरारा कि जिस से झुलस गई पलकें। सितारा बन के मिरी रात में वो चमका भी

It glowed like a star in my night too.
The ember which burnt eyelashes on way. 

असर वही हुआ आख़िर अगरचे पहले पहल। 
हवा का हाथ गुलों के बदन पे फिसला भी। 

Final effect was the same, though at start.
Wind hand over flower bodies
slid it's way.

उन्हें तो हिफ़्ज़ थे सब अपने लोग नाम बनाम। 
हमीं को याद न आया किसी का चेहरा भी। 

He remembered all his people by name.
I could not recall any face on the way . 

Monday, 9 November 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. HAR BAAT MEN MAHKE HUYE...

हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुशबू।
याद आई बहुत पहली मुलाक़ात की ख़ुशबू। 

A fragrance of feeling in every talk. 
I remember a lot our very first talk.

छुप छुप के नई सुबह का मुँह चूम रही है। इन रेशमी ज़ुल्फ़ों में बसी रात की ख़ुशबू। 

Stealthily it kisses a new morning. 
Fragrance of night in silk tress stock. 

मौसम भी हसीनों की अदा सीख गए हैं। 
बादल हैं छुपाए हुए बरसात की ख़ुशबू। 

Weather has learnt the style of cute dames. 
Clouds conceal fragrance of rain in lock. 

घर कितने ही छोटे हों घने पेड़ मिलेंगे। 
शहरों से अलग होती है क़स्बात की ख़ुशबू। 

Houses are small but with very shady trees. 
Towns and cities have different fragrance stock. 

होंटों पे अभी फूल की पत्ती की महक है। 
साँसों में रची है तिरी सौग़ात की ख़ुशबू। 

There is still a smell of flowers on the lips. 
Your fragrant gift exists in breath knock. 


Thursday, 29 October 2020

कठोपनिषद पद्यानुवाद द्वितीय अध्याय व्याख्या कार :स्वामी चिन्मयानन्द एवं सर्वपल्ली राधाकृष्णन ।....

        प्रथम वल्ली

परांचि खानि व्यतृणत्स्वयम्भू_
स्तस्मात्परांपश्यति नान्तरात्मन् ।
कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्ष_
दावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ।

इन्द्रियों को बहिर्मुख कर नष्ट उनको कर दिया। 
देखतीं बाहर कब अन्तरात्मा देखा किया।
 इन्द्रियों को रोक कर अमृतत्व की इच्छा करे। 
धीर व्यक्ति वही है जो अंतरात्मा लख सके।

पराचः कामाननुयन्ति बालास्ते
मृत्योर्यन्ति विततस्य पाशम् ।
अथ धीरा अमृतत्वं विदित्वा
ध्रुवम ध्रुवेष्विह न प्रार्थयन्ते।। 2।।

बाह्य भोगों में लगा नर फँसे मृत्यु पाश में। अमरत्व को ध्रुव जान रहता धीर अन्य तलाश में।
काम कर्म व अविद्या तीनों हृदय की ग्रंथियाँ। 
इनके फलों को भोगने को निम्न इतनी  योनियाँ। 
जो धीर व्यक्ति सचेत रहें विवेक से औ' ज्ञान से।
सीमित नश्वर अस्थिर इन्द्रिय भोग इच्छा से परे। 
करते दमन वे इन्द्रियों का कर्म काम व अविद्या।
जब नष्ट होते फैलती हैं ज्ञान की तब रश्मियाँ।

येन रूपं रसं गन्धं
शब्दान् स्पर्शांश्च मैथुनान् ।
एतैनेव विजानाति
किमत्र परि शिष्यते ।। एत द्वै तत् ।। 3।।

आत्मा द्वारा मिलता नर को इन्द्रिय सुख का ज्ञान। 
अविज्ञेय नहीं इस से कुछ भी इतना लो तुम जान। 
जीवात्मा ही परमात्मा है परमात्मा जीवात्मा।
 यह वही है वह यही है करें भ्रम का ख़ात्मा।

स्वप्नान्तं जागरितान्तं
चोभौ येनानुपश्यति।
महान्तं विभुमात्मानं
मत्वा धीरो न शोचति।। 4।।

होता प्रतीत जो स्वप्न में जाग्रत अवस्था में दिखें। 
आत्मा लखे यह जान कब धीर जन शोक करें। 
अपूर्णता के भाव से ही जन्म लेती कामना।
किस भाँति होवे पूर्ण है यह इन्द्रियों से सामना।
फल प्राप्त या अप्राप्त इच्छा दुःख का कारण बने। 
जब जान लेता ब्रह्म हूँ तब ही पुरुष पूरण बने। 

य इमं मध्वदं वेद
आत्मानंद जीवमन्तिकात्। 
ईशानं भूतभव्यस्य
न ततो विजुगुप्सते।। एतद्वै तत्।। 5।।

हो अभय भूत भविष्य शासक आत्मा को जानता। 
प्राण धारक कर्मफलभोक्ता उसी को मानता।

यः पूर्व तपसो जात_
मदभ्यः पूर्वमजायत। 
गुहां प्रविश्य तिष्ठन्तं
यो भुतेभिरव्यपश्यत।। एतद्वै तत्।। 6।।

भूतों से पहले तप से जो उत्पन्न हुए। 
बुद्धि रूपी गुहा में हो प्रविष्ट उसे लखे। 
देखता जो इस तरह वह देखता है ब्रह्म को
निश्चय यही है देखना जो चाहता तू ब्रह्म को।

या प्राणेन सम्भवत्य_
दितिर्देवतामयी ।
गुहां प्रविश्य तिष्ठन्तीं
या भूतेभिर्व्यजायत।। एतद्वै तत्।। 7।।

प्राण रूप से प्रकट हो देवमाता अदिति। 
बुद्धि रूपी गुहा में होती प्रतिष्ठित स्थिति। 
पैदा हुई है पंचभूतों संग प्रकृति रूप है। 
जो जानता है अदिति को यह तत्व ब्रह्म स्वरूप है।

अरण्योर्निहितो जातवेदा
गर्भ इव सुभृतो गर्भणीभिः। 
दिवे दिवे ईड्यो जागृवद्भिर्ह
विष्भद्भिर्मनुष्येभिरग्निः।। एतद्वै तत्।। 8।।

पोषित हुई है गर्भ सम जो अग्नि अरणी बीच में। 
नित्यप्रति है स्तुत्य अप्रमादी नर बीच में।
होम सामग्री सहित करते पुरुष जिसकी स्तुति।
वह योग्य अग्नि ब्रह्म है करते पुरुष जिसकी स्तुति।

यतश्चोदेति सूर्योऽस्तं
यत्र च गच्छति। 
तं देवाःसर्वे अर्पितास्तदु
नात्येति कश्चन।। एतद्वै तत्।। 9।।

होता जहाँ से उदित सूर्य व जहाँ होता लीन है। 
वह ब्रह्म है चैतन्य सत्स्वरूप है प्राचीन है।  व्यक्त करें अनित्य जगत वह ही सूर्य देव हैं।
 इन पंचभूतों के अधिष्ठाता कहाते देव हैं।

यदेवेह तदमुत्र यदमुत्र तदन्विह ।
मृत्योः स मृत्युमाप्नोति न इह नानेव पश्यति।। 10।।

जो तत्व हैं इस देह में वह तत्व ही अन्यत्र हैं। 
अन्यत्र हैं जो तत्व वह इस देह में सर्वत्र हैं। यह तत्व है बस एक पर देखे यहाँ अनेक। 
जन्म मृत्यु के चक्र में लेता जन्म अनेक।
आत्मज्ञानी पुरुष देखे जगत को इस रूप में। 
है अधिष्ठाता नियन्ता ब्रह्म एक ही रूप में।

मनसैवेदमाप्तव्यं नेह नानास्ति किंचन।
मृत्योः स मृत्युं गच्छति य इह नानेव पश्यति।। 11।।

आत्मा मन से प्राप्त हो तत्व यही है एक।
जन्म मृत्यु पाता रहे देखे अगर अनेक। 
धीरे-धीरे नियन्त्रित चित्त किए मन शान्त। 
आध्यात्मिक जिज्ञासु हो उत्तर ढूँढे शान्त। 

अंगुष्ठमात्रः पुरुषो मध्य आत्मनि तिष्ठति। 
ईशानो भूतभव्यस्य न ततो विजुगुप्सते।। 
एतद्वै तत्।। 12।।



अंगुष्ठ के परिमाण वाला बसे तन के मध्य में। 
भूत और भविष्य शासक आत्मा तन मध्य में।
रक्षा न करे शरीर कीअनुसरण आत्मा का
करे। 
निश्चय यही ऐ ब्रह्म तत्व न और कुछ इसके परे।

अंगुष्ठमात्रः पुरुषो ज्योतिरिवाधूमकः। 
ईशानो भूतभव्यस्य स एवाद्य स उ श्वः।। 
एतद्वै तत्।। 13।।

धूमरहित निर्मल निश्चल ज्योति तीनों काल में। 
अंगुष्ठमात्रः पुरुष लखे साधक सदा हर हाल में। 
सब प्राणियों में आज है कल भी रहेगा यह सदा।
 विकसित करे निज ध्यान तो मिल जाय उसमें सर्वदा। 

यथोदकं दुर्गे वृष्टं पर्वतेषु विधावति। 
एवं धर्मान्पृथक् पश्यन्तानेवानुविधावति।। 
।। 14।।

दुर्गम पर्वत पर बरसा जल नीचे बह कर जाय। 
अनियन्त्रित मन कामनावश इसे रोक न पाय। 
देख  वस्तुओं को पृथक उन सम ही हो जाय। I 
करें अगर एकत्र तो जल लाभप्रद हो पाय। 

यथोदकं शुद्ध शुद्धमासिक्तं तादृगेव भवति
एवं मुनेर्विजानत आत्मा भवति गौतम। 
।। ।5।। 

मिथ्या भ्रम संशय मिटें रहे शुद्ध जब ज्ञान। तब होता है व्यक्ति को परमात्मा का भान। मिलें शुद्ध जल तो रहें दोनों एक  समान। 
ज्ञानी मुनि और आत्मा यूँ ही मिलते आन।

          द्वितीय वल्ली

पुरमेकादशद्वारमजस्यावक्रचेतसः। 
अनुष्ठान न शोचति विमुक्तस्य विमुच्यते। 
।। 1।।

नित्य अजन्मा आत्मा इसकी नगरी ग्यारह द्वार। 
मुक्त अविद्या बंधन तो आत्मा से साक्षात्कार। 
जन्म मरण के चक्र से छुटे पाए वह नर मुक्ति। 
नचिकेता यह ब्रह्म है वही पूछी जिसकी युक्ति। 

हंसः शुचिषद् वसुरन्तरिक्षस_
द्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् ।
नृषद् वरसदृतसद व्योमसदब्जा
गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं बृहत् ।2।

सूर्य रूप आकाश में अंतरिक्ष में वायुरूप। अग्नि रूप में धरा पर घर में अतिथि स्वरूप। 
रहता देवों नरों में तथा यज्ञ आकाश। 
जलजा गोजा शैलजा ऋतजा सत्यप्रकाश। 

ऊर्ध्वं प्राणमुन्नयत्यपानं प्रत्यगस्यति। 
मध्ये वामनमासीनं विश्व देवा उपासते। 3।

ऊपर जाता प्राण ले नीचे लाय अपान। मध्यस्थित इस पूज्य का करें देव सम्मान। 

अस्य विस्रं समान्
 शरीरस्थस्य देहिनः ।
देहाद् विमुच्यमानस्य
किमत्र परिशिष्यते ।एतद्वै तत्।। 4।।

तजता जब इस देह को देही हो अवसान। 
पंचतत्व में जा मिलें तुच्छ देह को मान। 

न प्राणेन न अपानेन मर्त्य  जीवति कश्चन।
इतरेण तु जीवन्त यस्मिन्नेतावुपाश्रितौ। 5।

जीता नहीं कोई मनुज भी प्राण से न अपान से। 
जब आत्मा तन छोड़ता तो मनुज जाता जान से। 

हन्त त इदं प्रवक्ष्यामि गुह्यं ब्रह्म सनातनम्
यथा च मरणं प्राप्य आत्मा भवति गौतम। 
।। 6।।

जीवात्मा तन छोड़ती तब हो जाती ब्रह्म। 
कर्म ज्ञान आधार पर मिले दूसरा जन्म। 

योनिमन्येप्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः ।
स्थाणुमन्येऽनुसंयन्ति यथाकर्म यथाश्रुतम्।

देहधारी हो कि स्थावर कर्म करते हैं नियत ज्ञान क्या अर्जित किया इस देह से देते सुमत। 

या एष सुप्तेषु जागर्ति
कामं कामं पुरुषो निर्मिमाणः। 
तदेव शुक्र तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते। 
तस्मिन्लोकाः श्रिताः सर्वे
सदुनात्येति कश्चन। एतद्वै तत्।। 8।।

जाग्रत स्वप्निल सुप्तावस्था जीवात्मा के रूप। 
रहे अलिप्त सदा अनुभव से आत्मा का हर रूप। 
विषय वासना ईर्ष्या स्वार्थ आदि सब वृत्त
देह लिप्त हो आत्मा रहता सदा अलिप्त। 

अग्निर्यथैको भुवनं प्रविष्टोरूपं
रूपं प्रतिरूप बभूव। 
एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा
रूपं रूपं प्रतिरूपो बहिश्च।। 9।।

हो प्रविष्ट जब अग्नि विश्व में हर रूप के अनुरूप हो। 
भीतर बाहर रहे आत्मा प्राणी रूप के अनुरूप हो। 

वायुर्यथैको भुवनं प्रविष्टो
रूपं रूपं प्रतिरूप बभूव। 
एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा
रूपं रूपं प्रतिरूपं बहिश्च।। 10।।

जिस भाँति वायु प्रविष्ट हो इस लोक में बहुरूप हो।
सब प्राणियों का अन्तरात्मा बाह्य हो बहुरूप हो। 

सूर्य यथा सर्वलोकस्य चक्षुर्न
लिप्यतेचाक्षुषैर्बाह्यदोषैः। 
एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा
न लिप्यते लोकदुःखेन बाह्यः।। 11।।

सूर्य नेत्र इस लोक का करता लोक प्रकाश। 
किन्तु नेत्र के दोष का होता तनिक न भास। 
दुःख भरे संसार को भोगे यहाँ शरीर। 
लिप्त न होता आत्मा रहे नित्य गम्भीर। 

एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा 
एकं रूपं बहुधा यः करोति। 
तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरा_
स्तेषां सुखं शाश्वत नेतरेषाम्।। 12।।

सर्वभूत अन्तरात्मा सबको रखे अधीन। 
एकरूप बहुरूप हो होता सर्वाचीन। 
जो देखे इस रूप में आत्मा ले आनन्द। 
धीर विवेकी और स्थिर नर पाता आनन्द। 

नित्य नित्यानां चेतनश्चेतनाना_
मेको बहूनां यो विद्धाति कामान् ।
तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां
शान्तिःशाश्वती नेतरेषाम् ।। 13।।

परिवर्तन है नियम जगत का जाने यह सब कोय। 
नित्य रूप अन्तरात्मा बिना न सम्भव होय। 
कर्मफलों के रूप में सुख दुःख पाती देह। 
आत्मा साक्षी की तरह रहता अपरिमेह। 

तदेतदिति मन्यन्ते अनिर्देश्यं परमं सुखम् ।
कथं नु तदविजानीयां किमु भाति विभातिवा।। 14।।

धीर पुरुष के लिए परम सुख यही आत्म 
विज्ञान। 
होता है या नहीं प्रकाशित कैसे पाऊँ जान? 

न तत्र सूर्य भाति न चन्द्र तारकं
नेमा विद्युत भान्ति कुयोऽयमग्निः। 
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति।। 15।।

वहाँ प्रकाशित होता सूर्य न चन्द्र और न तारे। 
विद्युत चमके और न करती अग्नि वहाँ उजियारे। 
स्वयं प्रकाशित होता आत्मा उसकी कांति महान। 
करता सबको प्रकाशित आत्मा प्रकाशमान। 

          तृतीय वल्ली

ऊर्ध्वमूलोऽवाक्शाख
एषोऽश्वत्थ सनातनः। 
तदेव शुक्र  तद ब्रह्म
तदेवामृतमुच्यते। 
तस्मिन्लोकाः श्रिताः सर्वे
तदु नात्येति कश्चन। एतद्वै तत्।। 1।।

सर्वोत्तम व पवित्रतम मूल वृक्ष का भाग। 
कल न रहेगा जो वही है अश्वत्थ नर जाग। है अनित्य संसार सदा से जन्म मृत्यु का फेरा। 
मूल ब्रह्म ही शुद्ध है आश्रित लोक ये तेरा। 
यदिदं किंच जगत् सर्वं
प्राण एजति निसृतम्। 
महदभयं वज्रमुद्यतं
य एतद् विदुरमृतास्ते भवन्ति।। 2।।

उदित ब्रह्म से यह जगत क्रियाशील हो जाय। 
उठे वज्र से महद्ब्रह्म को जान अमर हो जाय। 
सृष्टिगति लयबद्ध है नक्षत्र तारागण सभी।
आदेश मानें नियन्ता का जो कि सत् चैतन्य भी। 

भयादस्याग्निस्तपति भयास्तपति सूर्यः। 
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पंचमः।3।

अग्नि तपे सूरज तपे उसके भय से जाय। 
दौड़ाएं इन्द्र वायु औ'मृत्यु भय है सबहिं समाय। 

इह चेदशकद् बोद्धुं प्राक्शरीरस्य विस्रसः।
ततः सर्वेषु लोकेषु शरीरत्वाय कल्पते ।4।

यदि मनुष्य अज्ञान को नष्ट नहीं कर पाता। 
आत्मज्ञान बिन जन्म मृत्यु का वही चक्र रह जाता। 
स्वप्न रूप अज्ञान है जाग्रत रूपी ज्ञान। 
केवल मनु तन में कटे तेरा यह अज्ञान। 
स्वत्व भाव से करले नर आत्मा से साक्षात्कार। 
जीवभाव मिट जाय मिटे इस तन का अहंकार।

यथादर्शे तथाऽत्मनि
यथा स्वप्न तथा पितृलोके। 
यथाप्सु परीवददृशे तथा गन्धर्वलोके
छायातपयोरिव ब्रह्मलोके।। 5।।

दिखता है दर्पण में जैसे। 
आत्मा में ब्रह्म दिखे वैसे। 
पितृलोके में स्वप्न सम गंधर्वलोक में जल सम है अस्पष्ट। 
ब्रह्म लोक में है प्रकाश और छाया सदृश स्पष्ट। 

इन्द्रियां पृथग्भावं उदयास्तमयौ च यत्। 
पृथक् उतपद्यमानानां मत्वा धीरो न शोचति।। 6।।

पृथक भूतों से होती  इन्द्रिय उत्पन्न विभिन्न। 
उनकी क्षय उत्पत्ति से नहीं बुद्धिमान नर खिन्न। 
आत्मा उनसे अलग है जाने यह नर धीर। 
भोगों से आबद्ध तो रहता सिर्फ शरीर। 

इन्द्रियेभ्यः परं मनः मनसःसत्वमुत्तमम्। 
सत्वादधिमहानात्मा महतोऽव्यक्तमुत्तमम्।। 7।।

अव्यक्तात्तुपरः पुरुषःव्यापकोऽलिङ्ग एव च
यं ज्ञात्वा मुच्यते जन्तुरमृतत्वं च गच्छति। 
।। 8।।

इन्द्रिय से मन श्रेष्ठ है उससे बुद्धि श्रेष्ठ। 
महत्ततत्व उससे अधिक फिर अव्यक्त है श्रेष्ठ। 
सर्वश्रेष्ठ अलिङ्ग पुरुष जाने जो नरधीर। 
मुक्तिसाधना पूर्ण कर अमर होय नरधीर। 

न संदृशे तिष्ठतिरूपमस्य
न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम्। 
हृदा मनीषा मनसाभितृप्तो
य एतद्विदुरमृतास्ते भवन्ति।। 9।।

नहीं दृष्टि में ठहरता है आत्मा का रूप। 
नेत्र देख पाते नहीं अद्भुत रूप अनूप। 
मनन शक्ति से प्रकाशित इसका हृदय स्थान। 
अमर होय वो नर जिसे हो आत्मा का ज्ञान। 

यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह। 
बुद्धिश्च न विचेष्टति तामाहुः परमां गतिम्।
।। 10।।

शान्त हों मन सहित जब ज्ञानेन्द्रियाँ पाँचों  यहाँ। 
निश्चेष्ट हो जब बुद्धि उसको परम गति कहते यहाँ। 

तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिनद्रिय धारणाम् ।
अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ।। 11।।

स्थिर इन्द्रिय धारण को ही तो कहें धीरजन योग। 
मन द्वारा एकाग्र भाव से आत्मा से संयोग। 

नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्यो न चक्षुषा
अस्तीति ब्रुवतोऽन्यत्र कथं तदुपलभ्यते।
।। 12।।

मन वाणी और नेत्र से आत्मा सकें न पायँ
ऐसा है वह जो कहें और किस तरह पायँ। 

अस्तीत्येवोपलब्धस्य स्तत्वभावेन चोभयोः
अस्तीत्येवोपलब्धस्य तत्वभावः प्रसीदति ।
।। 13।।

ब्रह्मलोक उपासना और ओम का ध्यान। 
सुख पाए उस लोक के ऐसा नर विद्वान। 
ले आलम्बन ओम का आत्मतत्व का ध्यान। 
स्वात्म भाव से समाधि हो आत्मा का भान। 
वह आत्मा है आय जब मन में ऐसा बोध। 
उसे न मिलता मार्ग में कोई भी अवरोध। 
जाने जो सम्पूर्ण सृष्टि में आत्मा को ही सार। 
उसी पुरुष को आत्मतत्व से होता साक्षात्कार। 
शान्त इन्द्रियाँ मन रहेविषयों से निवृत्त। 
होसंघर्ष न बुद्धि का पूर्ण आत्म पर चित्त। 

यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते
कामा येऽस्य हृदिश्रिताः। 
अथ मर्त्योऽमृतो भवत्यत्र
ब्रह्म सयश्नुते।। 14।।

छुटें हृदय की कामना सभी तभी वह धीर। ब्रह्म भाव को प्राप्त फिर होता वह नरवीर

यदा सर्वे प्रभिद्यन्ते
हृदयस्येह ग्रन्थयः। 
अथ मर्त्योऽमृतो भव_
त्येतावद्ध्यनुशासनम्।। 15।।

जब छेदित हों हृदय की ग्रन्थ सभी तो जीव। 
अमर होय उस समय ही ऐसा साधक जीव। 
काम कर्म और अविद्या का जब तोड़े पाश
होता ज्ञान प्रकाश से अमर अविद्या नाश। 
साधक को हो आत्मज्ञान तो जाने उसकी आत्मा। 
प्राणिमात्र की आत्मा है आत्मा ही परमात्मा। 

शतं चैका च हृदयस्य नाड्य_
स्तासां मूर्धानमभिनिःसृतैका ।
तमोर्ध्वमायन्नमृतत्वमेति
विष्वङ्ङन्यां उत्करमणे भवन्ति ।। 16।।

ब्रह्म रंध्र तक एक हृदय से नाड़ी जाती। 
ज्ञानमार्ग से यही सुषुम्ना नाड़ि कहाती। 
करें हृदय की एक सौ नाड़ी प्राणोत्सर्ग।
पाता है अमरत्व को ऊर्ध्वगमन कर वर्ग। 

अङगुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा
सदा जनानां हृदयेसन्निविष्टः ।
तं स्वाच्छरीरात् प्रवृहे_
न्मुञ्जादिवेषीकां धैर्येण ।
तं विद्याच्छुक्रममृतं
तं विद्याच्छुक्रममृतमिति।। 17।।

रहे जीव के हृदय आत्मा है अंगुष्ठ परिमाण। 
करे आवरण इसके बाहर धीर मुञ्ज सम जान। 
शुद्ध अमृत रूप में समझे इसे जाने इसे। 
इस आत्मा के रूप में अमरत्व को पाले इसे। 

मृत्युप्रोक्तां नचिकेतोऽथ लब्ध्वा
विद्यामेतां योगविधिं च कृत्स्नम्। 
ब्रह्मप्राप्तो विरजोऽमूद्विमृत्युः
अन्योऽप्येवं यो विदध्यात्मनेव।। 18।।

विद्या कही मृत्यु ने नचिकेता ने सीखा उसे। 
ब्रह्म मात्र का साक्षी कर अमृत प्राप्त हुआ उसे। 
निवृत्त होकर इन्द्रियों से शुद्ध जो भी मन करे। 
ध्यान कर हृद्देश में चैतन्य का दर्शन करे। 

ॐ सह नाववतु। सह नो भुनक्तु। सह वीर्यं करवाव है। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषाव है। 
ॐशान्तिः। शान्तिः। शान्तिः। 

साथ साथ रक्षा करें पालन भी हो साथ। 
साथ साथ विद्याध्ययन करें सभी हम नाथ
हो तेजस्वी अध्ययन बढ़े हमारी कांति। 
द्वेष करें न किसी सेॐ शान्ति शांति शांति। 






















Sunday, 25 October 2020

GHAZAL.. MUNAWWAR RANA.. SIYASAT KIS HUNARMANDI...

सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छुपाती है ।
कि जैसे सिसकियों के ज़ख़्म शहनाई छुपाती है ।

So tactfully truth politics conceals. 
As wounds of sobs clarinet conceals 

जो इस की तह में जाता है वो फिर वापस नहीं आता। 
नदी हर तैरने वाले से गहराई छुपाती है। 

One who goes to bottom, doesn't return. 
From swimmer it's depth river conceals. 

ये बच्ची और कुछ दिन चाहती है माँ को ख़ुश रखना। 
ये कपड़ों की मदद से अपनी लंबाई छुपाती है। 

This girl wants mother to be happy a few days.
With help of clothes, height she conceals. 

GHAZAL.. JIGAR.. DIL MEN KISI KE RAAH KIYE JA RAHAA........

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं।
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

In someone's heart I am making a way.
What a beautiful sin is having it's say. 

गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं। 

A garde lover, flowers alone aren't dear to me. 
With me even thorns are having a say. 

यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर। 
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

As if I am committing one grave sin. 
Without you, my life is passing this way.

  न मै की आरज़ू है न साक़ी से कोई काम
आँखों से मस्त जाम पिए जा रहा हूँ मैं। 

Neither I long for wine nor wine girl's nod.
Drink from her eyes is so intoxicating to say.

फ़र्दे अमल सियाह किए जा रहा हूँ मैं। 
रहमत को बेपनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

I am darkening man's role to such an extent. 
Almighty is boundless, appealing to say. 

 मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़्मत में चार चांद। 
ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ  मैं। 

Dignity of love has turned fourfold. 
Beauty in itself is witnessing the stay. 

मासूमिए जमाल पे भी जिस को रश्क हो। ऐसे भी कुछ गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

Envy of simplicity of beauty it is. 
The type of sins I am commuting today. 

मुझसे अदा हुआ है 'जिगर' ज़िन्दगी का हक़। 
हर ज़र्रे को गवाह किए जा रहा हूँ मैं। 

O 'Jigar' I have played a searcher's role. 
Every grain of sand is witnessing my say. 




Tuesday, 13 October 2020

कठोपनिषद... पद्यानुवाद प्रथम अध्याय व्याख्या कार स्वामी चिन्मयानन्द एवं सर्वपल्ली राधाकृष्णन ।

उशन् ह वै वाजश्रवसःसर्ववेदसं ददौ। 
तस्य ह नचिकेता नाम पुत्र आस।1। 

स्वर्ग कामना हेतु कर, अपना सब कुछ दान।
वाजश्रवा के पुत्र ने किया यज्ञ अभियान।

तं ह कुमार सन्तं दक्षिणासु नीयमानासु। 
श्रद्धाऽऽविवेश सोऽमन्यत  ।2।

नचिकेता ऋषिपुत्र था, श्रद्धा जगी, विचारा।
भूले मुझे अभी तक, पितु ने दान दिया न सारा।

पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरिन्द्रियाः।
अनन्दा नाम ते लोकास्तान् गच्छति ता ददत्।3। 

खा चुकी जो घास, दूही जा चुकीं, जल पी लिया।
जो न बच्चे दे सकें, गायों को पितु ने दे दिया।
इनसे तो आनन्दशून्य लोकों की होगी प्राप्ति। 
मैं भी हूँ, सर्वस्व दान की अभी न हुई समाप्ति।

स होवाच पितरं तत कस्मै मा दास्यसीति। 
द्वितीयं तृतीयं तं होवाच मृत्यवे त्वा ददामीति ।4। 

 मुझे दान देंगे किसको, जब पूछा बारम्बार। 
यम को दिया, ऋषि ने क्रोधित होकर की  हुंकार। 

बहूनामेमि प्रथमो बहूनामेमि मध्यमः। 
किं स्विद्यमस्य कर्तव्यं यन्मयाद्य करिष्यति।5। 

कुछ शिष्यों से उत्तम, कुछ से मध्यम हूँ, यह ज्ञान। 
मुझ से हो, यमदेव का कार्य पड़ा क्या आन? 

अनुपश्य यथा पूर्व प्रतिपश्य तथापरे। 
सस्यमिव मर्त्यः पच्यते सस्यमिवाजयते पुनः।6। 

देखें यह ही पूर्व पुरुष कैसे करते जग में व्यवहार। 
और आज के साधुपुरुष के हैं कैसे आचार विचार। 
बीज प्रस्फुटित होता, बढ़ता, फिर हो जाता नष्ट। 
फिर से यही चक्र चलता जीवन का हुआ स्पष्ट। 
जन्म मरण का चक्र सदा चलता ही रहता तात। 
दें मुझको जाने की आज्ञा, रखें अपनी बात। 
नचिकेता चल दिया यमपुरी, देखे बंद कपाट। 
तीन दिवस और तीन रात्रि तक उसने जोही बाट। 

वैश्वानरः प्रविशत्यतिथिर्ब्राह्मणो गृहान्। 
तस्यैतां शान्ति कुर्वन्ति हर वैवस्वतोदकम्।7।

ब्राह्मण अतिथि गृहस्थ घरों में, करते अग्नि समान प्रवेश। 
उसी अग्नि की शांति हेतु,है सूर्य पुत्र जल का निर्देश। 

आशा प्रतीक्षा संगतं सूनृतां च इष्टापूर्ते पुत्रपशूँश्च सर्वान्। 
एतदवृङ्क्ते पुरुषस्याल्पमेधसो यस्यानश्ननन्वसति ब्राह्मणो गृहे।8।

इच्छा ज्ञात अज्ञात की, इष्ट कार्य, उद्यान। 
प्रिय वाणी औ'कर्मफल संचित अब तक जान। 
अल्पबुद्धि नर, रहता जिस घर ब्राह्मण बिन आहार। 
 नष्ट करे सुत, फल, पशु पाकर यह ऐसा व्यवहार। 

तिस्रो रात्रीर्यदवात्सीर्गृहे मे अनश्नन्ब्रह्मन्नतिथिर्नमस्यः। 
नमस्तेऽऽस्तु ब्रह्मन्स्वस्ति मेऽस्तु तस्मात्प्रति त्रन्वरान्वृणीष्व।9। 
तीन रात्रि आहार बिन काटीं मेरे द्वार। 
आदरणीय अतिथि, अब मेरा  नमन करें स्वीकार। 
हो मेरा कल्याण, अतः मैं देता हूँ वर तीन।
एक रात्रि का एक वर, यह मेरे आधीन। 

शान्तसंकल्पः सुमना यथा स्यात् वीतमन्युर्गौतमो माभि मृत्यो ।
त्वत्प्रसृष्टं माभिवदेत्प्रतीत एतत्त्रयाणां प्रथम वरं वृणे।10। 

पहला वर दें शांत, प्रसन्नचित्त औ'क्रोध रहित हों तात। 
भेजें आप मुझे घर तो पहचानें और करें फिर बात। 

यथा पुरस्ताद्भविता प्रतीत औद्दालकिः आरुणिर्मत्प्रसृष्टः। 
सुखं रात्रीः शयिता वीतमन्युस्त्वां ददृशिवान्मृत्युमुखात्प्रमुक्तम् ।11।

शेष रात्रि होकर प्रसन्न वह शयन करे, पहचानेगा। 
गौतम, सुत को, मेरे मुख से मुक्त हुआ जब जानेगा। 

स्वर्ग लोके न भयं किंचनास्ति न तत्र त्वं न जरया बिभेति। 
उभे तीर्त्वाशनायापिपासे शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके ।12।

स्वर्गलोक में आप न, वृद्धावस्था का भय हो न पास। 
शोक न भय, हैं सब प्रसन्न, न ही लगे भूख न प्यास। 

स त्वमग्निं स्वर्ग्यमध्येषि मृत्यो प्रबूहि त्वं श्रद्दधानाय मह्यम्। 
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त एतद द्वितीयेन वृणे वरेण ।13। 

साधनभूत स्वर्ग की अग्नि, मृत्यु आपको ज्ञान। 
विवरण कर मुझको समझाएँ श्रद्धालु इक जान। 
वासी स्वर्गलोक के कैसे करें अमरता प्राप्त? 
वर द्वितीय मेरा यहीं होता आज समाप्त। 

प्र ते ब्रवीमि तदु मे निबोध स्वर्ग्यमग्निं नचिकेतः प्रजानन् ।
अनन्तलोकाप्तिमथो प्रतिष्ठा विद्धि त्वमेतं निहितं गुहायाम्।14। 

तुम से कहूँगा अग्नि है आधार इसको जान ले। 
है बुद्धि रूपी गुहा में स्थित तू इसे पहचान ले। 
स्वर्गप्रद इस अग्नि को मैं जानता अच्छी तरह। 
हों प्राप्त लोक अनन्त जो यह जान ले अच्छी तरह। 

लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा। 
स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तमस्थास्य मृत्युःपुनरेवाह तुष्टः।15। 

कैसे कितनी किस तरह ईंट लगाई जाय। 
नचिकेता से शिष्य को कहते यम समझाय। 
कारणभूत अग्नि लोकों की विस्तृत दी बतलाय। 
जब पूछा तो, शिष्य ने सभी दिया दोहराय। 

तमब्रवीत्प्रीयमाणो महात्मा वरं तवे आद हो ददामि भूयः। 
तवैव नाम्ना भवितायमग्निः सृंकां चेमामनेकरूपां गृहाण ।16 ।

हो प्रसन्न यम ने दिया उसे एक वरदान। 
होगी तेरे नाम से अब इसकी पहचान। 
माला रूप अनेक यह तुमको करूँ प्रदान।
ग्रहण करो, जिस भाँति ली, शिक्षा अब तक जान। 

त्रिणाचिकेतस्त्रिभिरेत्य संधिं छत्रिकर्मकृत् तरति जन्ममृत्यू।
ब्रह्मजज्ञं देवमीड्यं विदित्वा निचाय्येमां शान्तिमत्यन्तमेति ।17।

नाचिकेत अग्नि का तीन बार चयन कर
आचार्य माता पिता तीनों को नमन कर
स्तुति ज्ञान और दान, ब्रह्मोत्पन्न देव जान
अनुभव जो करता है, जन्म मृत्यु तरता है

त्रिणाचिकेतसत्रयमेतद्विदित्वा य एवं विद्वांश्चिनुते नाचिकेतम्। 
स मृत्युपाशान्पुरतः प्रणोद्य शोकातिगो मोदते स्वर्गलोके। 17।

इस नाचिकेत अग्नि का चयन, ज्ञान, अभ्यास । 
जो करता सो मृत्युपूर्व ही पाता स्वर्गाभास
धीरे-धीरे जो इसे करता क्रमानुसार। 
राग द्वेष अज्ञान हर खुले मोक्ष का द्वार। 

एष तेऽग्निर्नचिकेतः स्वर्ग्यो यमवृणीथा द्वितीयेन वरेण ।
एतमग्निं तवैव प्रवक्ष्यन्ति जनासस्तृतीयं वरं नचिकेतो वृणीष्व ।19।

स्वर्ग साधनभूत अग्नि का चाहा तुमने ज्ञान। 
उसे सभी नचिकेता अग्नि कहेंगे यह लो जान। 
अब तृतीय वर मांग लो कहते यों यमराज 
मुझे प्रतिज्ञा याद है, पूर्ण करूँगा काज। 

येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्येऽस्तीत्येके नायमस्तीति चैके।
एतद्विद्यामनुशिष्टस्त्वयाहं वराणामेष वरस्तृतीयः। 20।

कोई कहता है रहे, मरता जो इंसान। 
नहीं रहे, कोई कहे, दें शिक्षा वरदान। 
यह संशय गंभीर है कई विरोधाभास। 
आप निवारण कीजिए यह मेरी अरदास। 

देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा न हि सुविज्ञेयमणुरेष धर्मः। 
अन्यं वरं नचिकेतो वृणीष्व मा मोपरोत्सीरति मा सृजैनम्। 21।

पूर्वकाल में देव भी भ्रमित रहे यह जान। 
बालक कुछ भी और तुम लेलो मुझसे ज्ञान। 
गूढ़ बहुत गंभीर है व्याख्या में यह ज्ञान।
और मांगलो तीसरा मुझसे तुम वरदान। 
परख रहे जिज्ञासु को इस प्रकार यमराज। ग्राह्यक्षमता है अगर, तो मैं कह दूँ आज। 

देवैरत्रापि विचिकित्सितं किल त्वं च मृत्यो यन्न सुविज्ञेयमात्य। 
वक्ता चास्य त्वादृगन्यो न लभ्यो नान्यो वरस्तुल्य एतस्य कश्चित्।22।

इस समान वर है नहीं दूजा कोई तात। 
भ्रमित रहे हैं देवता भी इससे यह ज्ञात। 
वक्ता जो व्याख्या करे इसकी आप समान। 
मृत्युलोक में मिलेगा कहाँ मुझे भगवान? 

सतायुषः पुत्र पौत्रान्वृणीष्व बहून्पशून्हस्तिहिरण्यमश्वान्। 
भूमेर्महदायतनं वृणीष्व स्वयं च जीव शरदो यावदिच्छसि। 23।

पुत्र पौत्र सौ वर्ष के लो तुम मुझसे मांग। 
हाथी घोड़े स्वर्ण भू जितनी इच्छा मांग। 
आयु तुम्हारे लिए लो चाहो जितने वर्ष। 
दे दूँगा मैं सब तुम्हें बालक आज सहर्ष। 

एतत्तुल्यं यदि मन्यसे वरं वृणीष्व वित्त चिरजीविकां च।
 महाभूमौ नचिकेतस्त्वमेधि कामानां त्वा कामभाजं करोमि ।24।

और कोई इच्छा तेरी मन में हो, कह डाल। चिरस्थाई हो जीविका एवं भूमि विशाल। 
धन औ'सारी कामना भोगो जैसे चाह। 
दे देता हूँ वर अभी भोगो बेपरवाह। 

ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान्कामान्श्छन्दतः पार्थयस्व।
इमा रामाः सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीयाः मनुष्यैः। 
आभिर्मतप्रत्ताभिः परिचारयस्व नचिकेतो मरणं मानुप्राक्षीः। 25।

दुर्लभ मानवलोक में जितने भी हैं भोग 
रथ बाजों संग ये स्त्री मनुज सकें न भोग। 
सेवा इनसे करा ले तत्क्षण कर दूँ दान। 
प्रश्न मृत्युसंबद्ध जो अड़ो न उस पर आन। 

श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत् सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।
अपि सर्वं जीवितमल्पमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ।26।

कल रहेंगे या नहीं ये भोग यह किसको पता? 
क्षीण करते इन्द्रियों के तेज को यह जानता। 
बहुत थोड़ा मनुज का जीवन हैं ये बस नाम के। 
प्रभु नृत्य वाहन गीत रखें ये मेरे किस काम के। 
सम्पन्न मन कैसे करेगा कामनाओं को कहो। 
हो आयु जितनी भी अधिक थोड़ी रहेगी वह प्रभो। 

न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत्वा।
जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं वस्तु मे वरणीयः स एव। 27।

कौन मनुज हो सका है अब तक धन से तृप्त? 
दर्शन कर के आपके मन न रहा अब लिप्त। 
धन व आयु तो मिलेंगे बिन मांगे ही तात। 
प्रार्थनीय वर है वही समझाएँ वह तात। 

अजीर्यताममृतानामुपेत्य जीर्यन्मर्त्यः क्वधःस्थः प्रजानन्।
अभिध्यायन्वर्णरति प्रमोदान् अतिदीर्घे जीवित को रमेत। 28।

बूढ़े न हों जो देवता उन तक पहुँच कर कौन नर? 
सुख भोग जो कि अनित्य हैं उनके लिए लंबी उमर ! 
इन्द्रिय मन औ' बुद्धि से परे रहा वैराग। 
संभव यह होगा अगर हरि से है अनुराग। 

यस्मिन्निदं विचिकित्सन्ति मृत्यो यत्साम्पराये महति ब्रूहि नस्तत् ।
योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो नान्यं तस्मान्नचिकेता वृणीते ।29।

है या नहीं संदेह करते जिस विषय में ज्ञान दें। 
जो गहनता से ओतप्रोत वही मुझे वरदान दें। 
परलोक के ही इस विषय में चाहता मैं जानना। 
विवरण सहित समझाइए गुरुदेव यह ही कामना। 

          द्वितीय वल्ली   

अन्यच्छ्रयोऽन्यदुतैव यस्ते उभे नानार्थे पुरुषों सिनीतः। 
तयोः श्रेय आददानस्य साधुर्भवति हीयतेऽर्थाद्य उ प्रेयो वृणीते । 1।

दो प्रकार के कर्म हैं इस जीवन के माहिं। 
दोनों नर को बाँधते भिन्न राह ले जाहिं। 
प्रेय लगे प्रिय भोग औ'है इस राह विलास।
श्रेय देत अध्यात्मसुख अंतःकरण विकास। 

श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ समपरीत्य विविनक्ति धीरः ।
श्रेय हि धीरोऽभि प्रेयो वृणीते प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते ।2।

श्रेय प्रेय दोनों ही आते हैं मानव के पास। 
इन्हें अलग कर छाँटता बुद्धिमान हर श्वास
करे श्रेय का चयन जो वह नर है सविवेक।
बुद्धिहीन नर प्रेय से सदा लगाए टेक। 

स त्वंप्रियान्प्रियरूपांश्च कामान् अभिध्यायन्नचिकेतोऽत्य स्राक्षीः।
नैतां सृंकां वित्तमयीमवाप्तो यस्यां मज्जन्ति बहवो मनुष्याः ।3।

चिंतन कर तूने त्यागे प्रिय लगने वाले भोग। 
नचिकेता धनप्राया गति का बहुतेरों को रोग। 
देख तुम्हारे इस विवेक को मुझको हर्ष अपार। 
त्यागी सुन्दर नारियाँ त्यागे मुक्तक हार। 

दूरमेते विपरीते विषूची अविद्या या च विद्येति ज्ञाता। 
विद्याभीप्सितं नचिकेतसं मन्ये न त्वा कामा बहवोऽलोलुपन्त । 4।

ये जो विद्या अविद्या इनके फल विपरीत। 
इनमें है अंतर बहुत है स्वभाव विपरीत। 
इस विद्या का अभिलाषी हैतू यह मैंने जाना। 
नहीं प्रलोभन डिगा सके तूने उनको पहचाना। 

अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितम्मन्यमानाः। 
दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमानासु यथान्धाः ।5।

गहन अविद्या में रहते हैं पंडित निज को मान। 
इच्छित गतियाँ कुटिल भटकते रहते ये इंसान। 
अंध पुरुष एक जैसे दूजे अंधे को ले जाए। 
रहें भटकते राह नहीं कोई भी दिखला पाए। 

न साम्परायः प्रतिभाति वातं प्रमाद्यन्तं वित्तमोहेन मूढम् ।
अयं लोको नास्ति पर इति मानी पुनः पुनर्वशमापद्यते मे। 6।

अंधे जो धनमोह से करते मूर्ख प्रमाद। 
मार्ग नहीं परलोक का इनको कोई याद। 
कहते बस यह लोक है कोई न परलोक। 
मेरे बंधन में फँसे पाते हरदम शोक। 

श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः शृणवन्तोऽपि बहवो यं न विद्युत। 
आश्चर्यों वक्ताकुशलोऽस्य लब्धा_ऽऽश्चर्यो ज्ञाता कुशलानुशिष्टः। 7।

जिसे समझ लें श्रवण कर यह आत्मतत्व आश्चर्य। 
आचार्य कुशल आश्चर्य है निपुण शिष्य आश्चर्य। 
सुन समझें सब अर्थ कब इसका सारे शिष्य। 
करें विवेचन गुरु करें निर्मित यहाँ भविष्य।

न नरेणावरेण प्रोक्त एष सुविज्ञेयो बहुधा चिन्त्यमानः। 
अनन्यप्रोक्ते गतिरत्र नास्ति अणीयान्ह्यतर्क्यमणुप्रमाणात्। 8।

करे आत्म का ब्रह्म से जो गुरु साक्षात्कार। वही ज्ञान को वितरण करने का रखते अधिकार। 
संशयहीन शिष्य हो जाता जब पाता यह ज्ञान। 
जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटे सुन कर यह व्याख्यान। 
 
नैषा तर्केण मतिरापनेया प्रयोक्ता नैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ। 
यां त्वमायः सत्यधृतिर्बतासि त्वादृंनो भूयान्नचिकेतः प्रष्टा ।9।

गुणग्राही हो शिष्य तुम नहीं तर्क का स्थान। 
ऐसे जिज्ञासु मिलें शिक्षक का अरमान। 
केवल बुद्धि विलास से इसे न जाना जाय। जिज्ञासु मन हो शुद्ध अंतःकरण यही उपाय। 

जानाम्यहं शेवधिरित्यनित्यं न ह्यध्रुवैः प्राप्यतेहि ध्रुवों तत्। 
ततो मया नाचिकेतश्चितोऽग्निः अनित्यैर्द्रव्यैः प्राप्तवानस्मि नित्यम् ।10।

कर्मफल की निधि अनित्य है, नित्य कैसे प्राप्त हो। 
नाचिकेत अग्नि के चयन से यमत्व मुझको प्राप्त हो। 

कामस्याप्तिं जगतः प्रतिष्ठां
क्रतोरनन्त्यमभयस्य पारम् ।स्तोममहदुरुगायं प्रतिष्ठा दृष्ट्वा
धृत्या धीरो नचिकेतोऽत्यस्राक्षीः ।11।

भोगसमाप्ति, प्रतिष्ठा जग की, यज्ञफल का अनन्तत्व। 
धैर्यपूर्वक देख कर त्यागे तूने ब्रह्मलोक 
के तत्व। 
मर्त्यलोक के प्राणी करते ब्रह्मलोक की चाह। 
वैरागी है शिष्य भावना,  कहूँ न कैसे वाह।

तं दुर्दर्शं गूढमनुप्रविष्टं
गुहाहितं गह्वरेष्ठं पुराणम् । 
अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं
मत्वा धीरो हर्षशोकौ जहाति ।12।

हैशरीर से प्राण तब मन, बुद्धि उससे सूक्ष्म है। 
फिर हृदयगुह स्थित आत्मा जो इससे भी सूक्ष्म है। 
बाह्यविषयों से हटा कर चित्त आत्मा में लगा। 
तो आत्मदर्शन कर सकेगा भाव जब ऐसा जगा। 

एतच्छ्रुत्वा सम्परिगृह्य मर्त्यः
प्रवृह्य धर्म्यमणुमेतमाप्य ।
स मोदते मोदनीयं हि लब्ध्वा
विवृतं सद्म नचिकेतसं मन्ये ।13।

सुन कर समझ कर आत्मा को भिन्न जानो देह से। 
पाकर इसे आनन्द होगा अपरिमित सा स्नेह से। 
मैं मानता नचिकेता सारे खुले तेरे द्वार हैं। 
है शुद्ध अंतःकरण औ'आनन्दरूप अपार हैं। 

अन्यत्र धर्मादन्यत्राधर्मादन्यत्रास्मात्कृत
अकृतात्। 
अन्यत्र भूताच्च भव्याच्च यत्तत्पश्यसि तद्वद ।14।

धर्म अधर्म कार्य कारण व भूत भविष्य से जो परे। 
 गुरुदेव, जैसे आपने जाना वह मीमांसा  करें। 

सर्वे वेदा यत पदमामनन्ति
तपांसि सर्वाणि च यद वदन्ति। 
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति
तत्ते पदं संग्रहण ब्रवीम्योमित्येतत्। 15।

आध्यात्मिक साधन पथ का दें ओम शब्द से गुरु निर्देश। 
प्रतिपादित जो करे वेद तप ब्रह्मचर्य सब का संदेश। 

एतद्ध्येवाक्षरं ब्रह्म एतद्ध्येवाक्षरं परम्। 
एतद्ध्येवाक्षरं ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत् ।16।

यह अक्षर ही ब्रह्म है यह अक्षर ही पर। इच्छित सब मिले यह अक्षर जान कर।

एतदालम्बनं श्रेष्ठमेतदालम्बनं परम् ।
एतदालम्बनं ज्ञात्वा ब्रह्मलोके महीयते।17।

यही श्रेष्ठ आलम्बन  हैऔर यहीं पर है आलम्बन। 
महिमान्वित हो ब्रह्मलोक में जो जाने यह
आलम्बन। 

न जायते म्रियतेवा विपश्च्चिनायं
कुतश्चिन्न बभूव कश्चित् ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
नहन्यते हन्यमाने शरीरे ।18।

यह मेधावी आत्मा न जन्मे न मरे। 
न केहि कारण जन्म ले न  ही स्वतः बने। 
नित्य पुरातन शाश्वत अज है आत्मारूप। होती मृत्यु शरीर की आत्मा रहे स्वरूप। 
 
हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं
हतश्चेन्मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो
नान्यं हन्ति न हन्यते। 19।

मरने वाला यदि मर जाता ऐसा करे विचार। 
और मारने वाला समझे मैंने डाला मार। 
भ्रमित रहे दोऊ जने मरता सिर्फ शरीर। आत्मा तो अक्षुण्ण है समझें बुद्ध प्रवीर। 

अणोरणीयान्नमहतो महीया_
नात्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् ।
तमक्रतुः पश्यन्ति वीतशोको
धातुप्रसादान्महिमान मात्मनः ।20।

अणु से अणुतर व्यापक आत्मा रहे महान। 
हृदय गुहा में जीव के स्थित रहती यह जान। 
देखे जब निष्काम नर अंतःकरण प्रसाद। 
महिमा आत्मा की लखे रहे न शोक विषाद। 

आसीनो दूरं व्रजति शयानो याति सर्वतः।
कस्तं मदामदं देवं मदन्यो ज्ञातुमर्हति।21।

सोता हुआ सर्वत्र पहुँचे, बैठा हुआ जाए कितनी दूर। 
मदमुक्त मदयुक्त, कौन जाने देव को, बिन मेरे भरपूर। 

अशरीरं शरीरेष्वनवस्थेष्ववस्थितम्। 
महान्तं विभुमात्मानं मत्वा धीरो न शोचति। 22।

तनों में तनहीन, नित्य स्वरूप अनित्यों में कहा। 
व्यापी आत्म महान जान, धीर शोक न कर  रहा। 

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुना श्रुतेन। 
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष
आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्। 23।

शास्त्र ज्ञान न धारणा न बहुत श्रवण से पाय। 
आत्मा व्रण जिसे करे उसे स्वरूप दिखाय। 

नाविरतोवृश्चरितान_
नाशान्तोनासमाहितः। 
नाशान्तमानसो वापि
प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात्। 24।

पापकर्म से निवृत नहीं शान्ति न इन्द्रिय माहिं। 
चित्त शान्त और स्थिर नहीं आत्मज्ञान कब पाहिं। 

यस्य ब्रह्म च क्षत्र च उभे भवत ओदनः। 
मृत्युर्यस्योपसेचनं क इत्था वेद यत्र 
सः। 25।

ब्राह्मण क्षत्रिय मृत्यु सब आत्मा के आहार। 
साधन हीन पुरुष इसे जाने केहि  प्रकार। 

        त्रितीय वल्ली 

ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके
गुहां प्रविष्ट परमे परार्धे। 
छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति
पंचाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः। 1।

परमात्मा जीवात्मा वास है हृदय गुहा में जान। 
जीवात्मा भोगे सुकर्म फल छाया धूप समान। 
चयन करें नचिकेता अग्नि जब साधक तीनों बार। 
पंचाग्नि की कर उपासना कहें फिर वही सार। 
 
यः सेतुरी जानानाम् अक्षरं ब्रह्म यत्परम्। 
अभयं तितिर्षतां पारं नाचिकेतं शकेमहि।2।

यज्ञ हेतुनचिकेत अग्नि सेतु लिए संसार पार। 
भय रहित जो परम आश्रय ब्रह्म विद्या का कगार। 
उस ओर जाने की रही इच्छा सदा सद्पात्र में। 
यह सेतु है जो पार करने की ललक दे छात्र में। 
जीवलोक औ'स्वर्गलोक में नचिकेताग्नि है सेतु। 
श्रद्धा भक्ति एकाग्रता से चयन करने हेतु। 

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। 
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनं प्रग्रहमेव च। 3।

आत्मा रथी है शरीर रथ और बुद्धि ही है सारथी। 
मन है लगाम करे नियंत्रण योग्य बुद्धि सारथी। 

इन्द्रियाणिहयानाहुविषयांस्तेषु गोचरान्। 
आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः। 4।

कहते मनीषि कि इन्द्रियाँ घोड़े विषय ही रास्ता।
मन और इन्द्रिय युक्त आत्मा ही कहाता
 भोक्ता। 
कर्मेन्द्रियाँ ज्ञानेन्द्रियाँ हैं अश्व इस रथ के यहाँ। 
परमात्मा साक्षी लगे जीवात्मा भोक्ता यहाँ। 
कहते मनीषि कि इन्द्रियाँ ये विषयग्राही हैं सभी। 
क्षणभंगुर जीवन के सुख दुःख छूए न आत्मा कभी। 

यस्त्वविज्ञानवान्मवत्य युक्तेन मनसा सदा। तस्येन्द्रियाण्यवश्यानि दुष्टाश्वा इव सारथेः। 5।

अविवेकी मानव की असंयत इन्द्रियाँ न लगाम दें। 
तो दुष्ट घोड़े विषय भोगों की तरफ लेकर बढ़ें। 

यस्तु विज्ञानवान् भवति युक्तेन मनसा सदा। 
तस्येन्द्रियाणि वश्यानि सदश्वा इव सारथेः। 6।

होता विवेकी औ' समाहित चित्त तो इन्द्रिय सभी।
 वश में रहेंगे सारथी के अश्व अच्छे हों तभी। 

यस्त्वविज्ञानवान्मवत्य भवत्यमनस्कः
सदाशुचिः। 
न स तत्पदमाप्नोति संसारं चाधिगच्छति
। 7।

रखता न संयम चित्त पर अपवित्र रहता है सदा। 
परमपद पाता नहीं संसार चक्र में रह रहा।

यस्तु विज्ञानवान्भवति
समनस्कः सदा शुचिः।
स तु तदपदमाप्नोति
यस्माद्भूयो न जायते। 8।

विवेकवान पवित्र संयतचित्त नर पाते उसे। जिस जगह जाकर फिर कभी वह नर न कोई जन्म ले। 

विज्ञान सारथिर्यस्तु मनः प्रग्रहवान्नरः। 
सोऽध्वनः परमाप्नोति तद्विष्णोःपरमं पदम्।
। 9।

कुशलबुद्धि का सारथी मन पर कर अधिकार। 
विष्णु परमपद प्राप्त हो पार करे संसार। 

इन्द्रियेभ्यः प्रा ह्यर्था
अर्थेधभ्यशच परं मनः। 
मनस स्तु प्रा बुद्धिः
बुद्धेरात्मा महान्परः। 10।

विषय श्रेष्ठ है इन्द्रियों सेऔर विषयों से मन। 
मन से श्रेष्ठबुद्धि से आत्मा यही मनीषि कथन। 

महतः परमभ्यक्तम् _
अव्यक्तात्पुरुषः परः। 
पुरुषान्न परं किंचित्सा
काष्ठा सा प्रा गतिः। 11।

महत्तत्व से मूलप्रकृति परा अव्यक्त है जिसकी गति। 
अव्यक्त से है पुरुष श्रेष्ठ उससे परे न कोई गति। 

एष सर्वेषु भूतेषु
गूढोत्मान प्रकाशते ।
दृश्यते त्वग्रयाबुद्ध्या
सूक्ष्मता सूक्ष्मदर्शिभिः। 12।

सम्पूर्ण भूतों में छिपा यह आत्मा न प्रकाशमान। 
आचार्य जो हैं सूक्ष्मदर्शी देखते जो विचारवान। 

यच्छेद्वांमनसो प्राज्ञस्तद् _
यच्छेज्ज्ञान आत्मनि ।
ज्ञानमात्मनि महति निय_
च्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि। 13।

इन्द्रियों को मन में मन को बुद्धि में करे लीन। 
महत्तत्व में बुद्धि उसे शान्तात्मा में तल्लीन। 

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। 
क्षुरस्य धारा निशिता दुरस्त्यया दुर्गं
पतस्ततकवयोवदन्ति ।14।

उठो जागो श्रेष्ठ पुरुषों से निरन्तर ज्ञान लो। 
दुर्गम पथ है धार छुरे की सी इसे जान लो। 

अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं
तथारसं नित्यमगन्धवच्च यत् ।
अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं

महत्त्त्वसे परे हैआत्मा गन्ध विहीन। 
है अनन्त और अनादि स्पर्शहीन रसहीन। 
निश्चल नित्य अशब्द हैअव्यय और अरूप। 
इसे जान कर मृत्यु मुख से छूटे नर रूप। 

नाचिकेतमुपाख्यानं मृत्युप्रोक्तं सनातनम्।
उक्त्वा श्रुत्वा च मेधावी ब्रह्मलोके महीपते
। 16।

धर्मराज ने नचिकेता को दिया सनातन ज्ञान। 
सुनता रहे करे मनन सो नर बुद्धिमान। 
ध्यान से व विवेक से करता रहे विचार। 
उसके लिए खुले रहेंगे ये सारे द्वार। 

य इमं परमं गुह्यंश्रावयेद् ब्रह्मसंसदि।
प्रयतः श्राद्धकाल वा तदानन्त्याय कल्पते। तदानन्त्याय कल्पत इति। 17।

हो पवित्र ब्राह्मण सभा में जो करता पाठ।
श्राद्ध काल में सुनाए परम गुह्य यह पाठ। 
उन्नत फल होगा सदा उसी श्राद्ध को प्राप्त। 
प्रथमाध्याय उपनिषद का होता यहाँ समाप्त। 
ज्ञानजन्य आनन्द दें रक्षा करते साथ। 
विद्यार्थी तेजस्वि हों द्वेष करें न नाथ। 
ॐ शान्ति! शान्ति!! शान्ति!!!