Thursday, 30 July 2020

क़तील शफ़ाई.. ग़ज़ल.. गर्मिए हस्तिए नाकाम से जल जाते हैं।....

गर्मिए हस्तिए नाकाम से जल जाते हैं।
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं।
I get burnt with unfulfilled desire.
With evening, like lamps, get set on fire.
शम'अ जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए।
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं। The fire in which candle burns to expose. 
Anonymously I get burnt in that fire.
बच निकलते हैं अगर आतिशे अय्याम से हम। 
शोल ए आरिज़े गुलफ़ाम से जल जाते हैं।
If I escape from the fire of wine. 
The heat of her cheeks sets on fire. 
ख़ुदनुमाई तो नहीं, शेव ए अरबाबे वफ़ा। 
जिनको जलना है, वो आराम से जल जाते हैं।
Exhibition is no habit of being loyal. 
With ease, you can set yourself on fire. 
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ।
जाने क्यों लोग, मिरे नाम से जल जाते हैं।
Whenever my name is uttered with your's. 
Know not why, people get set on fire. 

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