Friday, 31 July 2020

ंSAHIR.. GHAZAL.. BHADHKA RAHE HAIN AAG LABE. .

भड़का रहे हैं आग लबे नग़्मागर से हम।
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम।
 I am blowing fire from the singer's lips.
How can I be silent by fear of worldly nips.
कुछ और बढ़ गए जो अंधेरे तो क्या हुआ।
मायूस तो नहीं हैं तुलू ए सहर से हम। What's there if darkness spreads a bit more. 
I still have hope from chirping  morning lips. 
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है। 
क्या देखें ज़िन्दगी को किसी की नज़र से हम? 
All that I can have is my own view. 
How to see life with someone else's tips? 
माना कि हम ज़मीं को न गुलज़ार कर सके। 
कुछ ख़ार कम तो हो गए गुज़रे जिधर से हम। 
Yes, I couldn't make a garden of the earth. 
Some thorns are removed from where my foot dips. 

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