Friday 28 August 2020

AHMAD FARAZ... GHAZAL.. AB KE HAM BICHHADE TO....

अब के हम बिछड़े, तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें ।
जिस तरह सूखे हुए फूल, किताबों में मिलें।
 If now we part, in dreams, may be bound. 
As dried out flowers, in books are found. 
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में, वफ़ा के मोती। 
ये ख़ज़ाने, तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें। 
Look for pearls of loyalty, in ejected people. 
It's possible, in ruins these treasures are found. 
ग़मे दुनिया भी, ग़मे यार में शामिल कर लो। 
नश्शा बढ़ता है, शराबें जो शराबों में मिलें। 
Add pain of world to the pain of love. 
When drinks are mixed, intoxication is profound. 
तू ख़ुदा है, न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा। 
दोनों इंसाँ हैं, तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें? 
Neither you are God nor my love angelic. 
When both are human, why be veil bound? 
आज हम दार पे, खींचे गए जिन बातों पर।
क्या अजब, कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें। 
The views that lead us to hangman's noose. 
Tomorrow in texts, by the world may be found. 
अब न वो मैं हूँ, न वो तू है, न माज़ी है 'फ़राज़'। 
जैसे दो शख़्स, तमन्ना के सराबों में मिलें। 
Neither I, nor you, nor our past is the same. 
As two persons, in mirage of desires, get around. 



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