Thursday, 6 August 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. APNI KHOI HUI JANNATEN....

अपनी खोई हुई जन्नतें पा गए, ज़ीस्त के रास्ते भूलते भूलते।
मौत की वादियों में कहीं खो गए, तेरी आवाज़ को ढूँढते ढूँढते ।
I could locate, lost heavens of late, forgetting life on the way. 
Got out of breath, in valley of death, listening your sonorous way. 
मस्तो सरशार थे, कोई ठोकर लगी, आसमाँ से ज़मीं पर, यूँ हम आ गए।
शाख़ से फूल जैसे कोई गिर पड़े, रक़्से आवाज़ पर झूमते झूमते।
I was drunk, stumbled 'n shrunk from the sky so high.
As a flower falls, from branch that stalls, swinging with sound to sway.
कोई पत्थर नहीं हूँ, कि जिस शक्ल में मुझ को चाहो, बनाया बिगाड़ा करो।
भूल जाने की कोशिश तो की थी मगर, याद तुम आ गए भूलते भूलते।
I am not a stone to form a shape, or deform it out of shape.
To forget, attempt was made, but the farewell parade, brought  memories all the way.
आँखें आँसू भरी, पलकें बोझल घनी, जैसे झीलें भी हों, नर्म साए भी हों ।
वो तो कहिए उन्हें कुछ हँसी आ गई, बच गए आज हम डूबते डूबते ।
Tears on heavy eye lashes, soft shades in deep lake splashes.
She happened to smile, just for a while to save me from drowning today.
अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें, अब वो शाने नहीं जो सहारा बनें। 
मौत के बाज़ुओ, तुम ही आगे बढ़ो, थक गए आज हम घूमते घूमते। 
Neither tress for shades, nor supportive shoulder blades.
Death arms instead, just step ahead, I am tired of roaming. today.
दिल में जो तीर हैं, अपने ही तीर हैं, अपनी ज़ंजीर से पा बज़ंजीर हैं। 
संगरेज़ों को हम ने ख़ुदा कर दिया, आख़िरश रात दिन पूजते पूजते।
Own arrows in heart, chained feet from start. 
Praying day 'n night, with all might, stone chips turned Gods all the way. 

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