Monday, 3 August 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. HAMARE HATHON MEN EK...

हमारे हाथों में एक शक्ल चाँद जैसी थी।
तुम्हें ये कैसे बताएँ वो रात कैसी थी। 
Something like moon was in hands that night.
How to tell you in words, how was that night. 
महक रहे थे मेरे होंठ उसकी ख़ुशबू से। 
अजीब आग थी बिल्कुल गुलाब जैसी थी।
Her fragrance was oozing out of my lips 
So strange was this fire, like rose alright. 
इसी में सब थे, मिरी माँ, बहन भी, बीवी भी।
समझ रहा था जिसे मैं वो ऐसी वैसी थी। 
She was all in one, my mother, sister, wife. 
She mingled so well with all at first sight. 
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई।
हमारे साथ में कोई लकीर ऐसी थी। 
A line demarcated all ways to your home. 
A line in our midst to delimit our might. 

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