Sunday, 16 August 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. MAIN KHIZAN KI DHOOP......

मैं ख़िज़ाँ की धूप का आईना, कि मैं एक हो कि हज़ार हूँ।
कहीं आँसुओं का हूँ क़ाफ़िला, कहीं जुगनुओं की क़तार हूँ।
I am mirror of autumn sun, single or many in a line. 
At places, a caravan of tears, or glow worms in a line.
कोई तारा टूट के गिर गया, कोई चाँद छत से उतर गया। 
किसी आसमान के हाथ से जो बिखर गया, वही हार हूँ।
A fallen star or a moon that has descended from the roof. 
Slipped from hands of the sky, a garland scattered to shine. 
वही सूखे सूखे से पेड़ हैं, वही उजड़ी उजड़ी सी टहनियाँ। 
कोई फूल जिसमें खिला नहीं, मैं ग़मों की ऐसी बहार हूँ। 
These trees are so dry and twigs have barren look. 
Where no flower ever bloomed, I am spring of pain to pine. 
मुझे क्यो बुलाते हैं प्यार से, ये चहकते पंछी मुंडेर  के। 
मैं ख़मोश रात का दर्द हूँ, मैं उदास चाँद का प्यार हूँ। 
Why lovingly should you call me, O chirping parapet birds? 
I am the pain of silent night, love of sad moon on decline. 
मैं वो शे'र हूँ जिसे आज तक, न कहा गया न सुना गया। 
जिसे उंगलियों ने छुआ नहीं, मैं वो बदनसीब सितार हूँ। 
I am a couplet that till date, was not said or heard by men. 
Untouched by the human hand, 
an unfortunate sitar so fine. 


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