विजय हेतु पूजन करूँ शिव का सभी प्रकार।
पंडित ऐसा चाहिए बुद्धिमान विद्वान। वैष्णव मत और शैव मत जाने एक समान।
जामवंत कहँ व्यक्ति है ऐसा इकभगवान। मित्र रहे हैं पितामह कहना लेगा मान।
जाता हूँ मै उसी से मिलने दें आशीश।
शिव रक्षा तेरी करें बोले यह जगदीश।
दादाजी के मित्र हैं करें सभी सम्मान। रावण ने हर जगह पर दूत बिठाए आन।
कर प्रणाम दशशीश नेआसन किया प्रदान।
भूल गए क्यों पौत्र को दिया किस लिए मान।
मेरे अपने हैं जिन्हें करना है एक यज्ञ।
हमें पुरोहित चाहिए तुम सा ही सर्वज्ञ।
आशा लेकर मैं यही आया हूँ लंकेश।
वैष्णव विधि भी जानते औ प्रिय तुम्हें महेश।
रावण बोला करूंगा पूजा सभी प्रकार।
दादाजी के मित्र हैं सब है अंगीकार।
अब मेरे यजमान का बतला दीजे नाम।
जामवंत कहने लगे वह कहलाते राम।
लंक विजय की कामना से पूजें यह आर्य।
राम धन्य हों आप यदि बन जाएँ आचार्य।
रावण ने उनसे कहा है मुझ को स्वीकार। करें व्यवस्था यज्ञ की सब है अंगीकार।
लंक विजय के ध्येय से राम कर रहे कार्य। विधिवत पूजन के लिए मुझे चुना आचार्य
वैदेही ने कर नमन उस को किया प्रणाम।
हो सौभाग्य अमर तेरा रण जीतें यह राम।
यज्ञ करूँ विधिवत अगर पत्नी भी हो साथ।
वैदेही बैठें वहीं पूजें जहँ रघुनाथ।
विधि होगी कुछ शास्त्र में होगा कोई विधान।
जब पत्नी बिन यज्ञ को कर पाए यजमान।
पत्नी तजे शरीर या करे त्याग यजमान।
तब ही उसकी मूर्ति संग यज्ञ करे यजमान
वैदेही को साथ में ब्राह्मण लाया आन।
हो समाप्त जब यज्ञ तो करे लंक प्रस्थान।
शुभ मुहूर्त शिव मूर्ति को करें प्रतिष्ठित आन।
आते होंगे मूर्ति ले पवन पुत्र हनुमान।
वैदेही रज कणों से करें मूर्ति निर्माण।
पूजा कर फिर पुरोहित करे प्रतिष्ठित प्राण
यज्ञ हुआ सम्पन्न तो कर प्रणाम यजमान।
क्या देना आचार्य को मुझे दक्षिणा दान।
निष्कासित हैं राज्य से ब्राह्मण को यह भान।
प्राण निकलने जब लगें तब दर्शन दें आन।
लंक विजय उद्देश्य धा पूजन का यजमान।
पूर्ण कामना हो तेरी यह मेरा वरदान।
वैदेही को साथ ले रावण चढ़ा विमान।
वानर भालू कर रहे सब उस का गुणगान।
ऋषि कम्मन ने प्रेम से इस का किया बखान।
अन्त समय में राम ने दिया दक्षिणा दान।
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