Saturday, 1 August 2020

JAVED AKHTAR.. GHAZAL.. DARD KE PHOOL BHI...

दर्द के फूल भी खिलते हैं, बिखर जाते हैं।
ज़ख़्म जैसे भी हों, कुछ रोज़ में भर जाते हैं।

Flowers of pain bloom and scatter again. 
Wounds heal in days, these do not remain. 


रास्ता रोक खड़ी है यही उलझन कब से।
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं।

 Since long a confusion is blocking my way.
If one asks where to, I can't explain. 


छत की कड़ियों से उतरते हैं मेरे ख़्वाब मगर। 
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं। 


My dreams descend from the hooks in roof. 
Are battered by walls and scatter again. 


नर्म अल्फ़ाज़, भली बातें, मुहब्बत, लहजे।
पहली बारिश ही में, ये रंग उतर जाते हैं।

Soft words,sweet talks and lovely  style. 
These colours get washed
 with first rain. 

उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी। 
सर झुकाए हुए, चुपचाप गुज़र जाते हैं।


No one appears in that window and I. 
Silently pass, head bent from the lane. 

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