Monday, 24 August 2020

SAHIR.. GHAZAL.. APNA DIL PESH KAROON APNI VAFA.....

अपना दिल पेश करूँ, अपनी वफ़ा पेश करूँ ।
कुछ समझ में नहीं आता, तुझे क्या पेश करूँ। 
Should I present my heart or loyalty to you. 
I don't understand what should I present to you. 
तेरे मिलने की ख़ुशी में, कोई नग़्मा छेड़ूँ। 
या तिरे दर्दे जुदाई का, गिला पेश करूँ। 
Should I sing a song in pleasure of this meet. 
Or present the anguish of parting with you. 
मेरे ख़्वाबों में भी तू, मेरे ख़यालों में भी तू।
कौन सी चीज़ तुझे, तुझ से जुदा पेश करूँ। 
You are in my dreams and in my thoughts. 
What is besides you that I should present to you. 
जो तिरे दिल को लुभाए, वो अदा मुझ में नहीं। 
क्यूँ न तुझ को कोई, तेरी ही अदा पेश करूँ। 
I lack the gesture that is lovely to your heart. 
Why not, your own gesture should I present to you. 

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