Monday, 10 August 2020

SAHIR.. GHAZAL.. MAIN ZINDAGI KA SAATH....

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया।
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया। 
I gave company to life all the way. 
I smoked away tensions all the way.
बरबादियों का सोग मनाना फ़िज़ूल था। 
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया। 
Was futile to be sorry for ruination. 
So I celebrated ruination all the way. 
जो मिल गया, उसी को मुक़द्दर समझ लिया। 
जो खो गया, मैं उस को भुलाता चला गया। 
Whatever I got, thought, it was fate.
Whatever I lost, was forgotten all the way. 
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ। 
मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया। 
Where pain and pleasure are at par. 
I brought my heart to that site all the way. 

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