अंधियारा तो रूठेगा ही जब चिराग़ जलता है।
आता है अभिमान जब हमें लगता हम करते हैं।
मिलता है सम्मान लगे जब जग को हम करते हैं।
भक्ति नहीं धन देती पर करती है हृदय प्रसन्न।
नर्क निराशा के पल हैं औ' स्वर्ग है जब हैं प्रसन्न।
अपनों को पहनाइए शर्तों का न लिबास।
अपनों को अच्छे लगें रिश्ते जब बिंदास।
मधुर कभी झरनों से ना संगीत सुनाई देता।
जहाँ तहाँ रस्ता रोके गर होती ना चट्टानें।
यूँ तो बस इक छोटा-सा है लफ़्ज़ लगन।
लग जाती ये जिसे बदल देती जीवन।
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