Saturday, 3 October 2020

कुछ मुक्तक..... रवि मौन

चित्रकार है कौन कि जिस ने, नभ पर रंग बिखेरे?
नीली पृष्ठभूमि पर, बादल विविध रूप, बहुतेरे। 
सूरज अपना तेज लिए, दिन भर प्रकाश फैलाता। 
चाँद और तारों की चादर, बिछती रात घनेरे।। 

इक चपटे कंकर से झुक कर, जोहड़ तल पर किया प्रहार। 
फेंकी इस प्रकार, मैं देखूँ तो, यह उछले कितनी बार। 
प्रमुदित बाल सुलभ मन होता, कई बार उछली जाना। 
सोचा नहीं कि जोहड़ ने, इस से पाया है कष्ट अपार।। 

हवा चल रही है तेज़ी से, साँय साँय ध्वनि आती ।
झूम झूम कर पत्ते हिलते, डाली है लहराती। 
नन्हीं नन्हीं बूँद गिर रहीं, मतवाला है मौसम। 
इस मौसम में स्वाभाविक है, याद तुम्हारी आती। 

रूठा है छोटा सा बालक, माँ से जाता दूर ।इच्छा है माँ उसे मनाए, प्यार करे भरपूर ।
माँ भी चली जा रही, पीछे चाहे उसे मनाऊँ । 
माँ बालक के प्रेम दृश्य पर, मन करता बलि जाऊँ ।।

भूख लगी बच्चे कहते हैं, पेड़ों से कलरव ध्वनि आई। 
छोड़ घोंसलों में बच्चों को, खग नभ में देते दिखलाई। 
किस का कौन निवाला होगा, यह सब तो है भाग्याधीन। 
किन्तु प्रयास सभी को करना है यह बात समझ में आई। 

रजत जयंती आ गई होता नहीं यकीन। 
बीस बरस के लग रहे दोनों जवाँ हसीन। 
बच्चो अपने आप पर रखना यह कंट्रोल ।
स्वर्ण जयंती आ रहे खुले न अपनी पोल ।
हीरक आए जयंती बच्चों को आशीश। 
ऐडी वैडी को मिले ज्ञान सुधा बख़्शीश ।
(टुन्नू टिन्नी को मिले ज्ञान सुधा बख़्शीश) 

बाल खिचड़ी हो गए तो क्या हुआ? 
है मुरव्वत तो वही महबूब की। 
साथ बरसों का रहा है जाने जाँ। 
तुमने भी उल्फ़त निभाई, ख़ूब की ।




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