Wednesday, 9 December 2020

NASIR KAZMI.. GHAZAL.. TUU JAB MERE GHAR AAYA THA...

तू जब मेरे घर आया था।
मैं एक सपना देख रहा था। 


When to my home your had gone. 
I was lost in deep dream zone.

पहली बारिश भेजने वाले।
मैं तिरे दर्शन का प्यासा था। 

O sender of the very first rain. 
Of your look I was thirsty to bone. 

चाँद की धीमी धीमी ज़ौ में। 
साँवला मुखड़ा लौ देता था। 

In light glow of the moon. 
Blue black face had shone. 

शाम का शीशा काँप रहा था। 
पेड़ों पर सोना बिखरा था। 

Trembling was the evening mirror. 
On the trees gold was thrown. 

जगमग जगमग कंकरियों का।
दश्ते फ़लक में जाल बिछा था।

Of the pebbles, shining, twinkling. 
On  sky jungle, net was thrown. 

दिन का फूल अभी जागा था। 
धूप का हाथ बढ़ा आता था। 

  Day flower had just got up. Hand of sunlight had grown. 

  धूप के लाल हरे होंटों ने। 
तेरे बालों को चूमा था। 

 By the red green lips of sun. 
Your tresses were kissed atone

दिल को यूँ ही रंज है वर्ना। 
तेरा मेरा रिश्ता क्या था? 

Heart's sad for nothing, or else
No relation in us had grown. 

तन्हाई मिरे दिल की जन्नत। 
मैं तन्हा हूँ, मैं तन्हा था। 

 Solitude is heaven of heart.
 I am alone, I was alone. 
 










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