वरक़ वरक़ वो फ़साना बिखर गया यारो।
With a desire to pen it I lived so far.
Page by page that story scattered O chums!
हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुँधला।
हर एक ज़ख़्म मिरे दिल का भर गया यारो।
All the marks of desire turned foggy.
All wounds of heart have healed O chums.
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है।
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें।
Why each meeting leads to separation finale.
Now all the time does this hurt prevail.
न जिस का नाम है कोई न जिस की शक्ल है कोई।
इक ऐसी शै का क्यूँ हमें अज़ल से इंतिज़ार है?
Neither it has a name nor a face on chart.
Why am I waiting for such a thing from start?
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