Friday, 11 June 2021

RAVI MAUN KI MADHUSHALA

विस्तृत होता ही रहता है अंतरिक्ष में है हाला।
कहीं सिकुड़ कर गड्ढे बनते और कहीं पर्वतमाला। 
ज्वाला कहीं दधकती है तो कहीं बहुत शीतलता है। 
किंतु धरा पर ही मिलते हैं साक़ी प्याला मधुशाला। 

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