रखें प्रभु.हम.पर.कृपा.हमेश।
मात.ने.तन का.मैल उतार।
एक.बालक.कीन्हा.तैयार।
मात.ने.डाली.उस.में.जान।
कहा,करना.है.मुझे. स्नान।.
कोई.भीतर न.आने.पाय।
दिया बालक को.यह.सिखलाय।
पार्वती.करने लगीं स्नान।
समय का रहा न कोई ध्यान।
गणों संग आए वहाँ महेश ।
जहाँ प्रहरी बन.खड़े.गणेश।
कहा,माता का है आदेश।
न कोई भीतर करे प्रवेश।
गणों संग छिड़ा वहाँ पर युद्थ।
हुआ बालक भी.उन पर क्रुद्ध।
उठाकर फेंके उसने दूर।
गणों का मद कर डाला चूर।
गणों को देख चाटते धूल।
हुए क्रोधित शिव लिया त्रिशूल।
काट डाला बालक का माथ ।
मात ने देखे क्रोधित नाथ।
रक्त रंजित देखा तिरशूल।
शक्ति भी आपा अपना भूल।
किया निज रूपों का विस्तार।
गणों पर करने लगीं प्रहार।
कहा जीवित कीजे मम लाल।
आपने काटा जिस का भाल ।
कटे जो इस त्रिशूल सै शीश ।
न जुड़े कभी धड़ से, कहँ ईश।
देव सब जुटे लगाया ध्यान।
शीश बालक का लाएँ आन।
मात का तो बालक संसार।
शीश हथिनी शिशु लिया उतार।
लगाया तब उस धड़ पर माथ।
हँसे ,तब बोले भोलेनाथ।
क्रोध को त्यागो ,जीवित लाल।
रखो बालक को अब संभाल।
गणों के अधिपति बने गणेश।
विघ्न सब दूर रखें विघ्नेश।
प्रथम पूजित देवों में कौन।
सभी इच्छुक थे ,पर थे मौन।
परिक्रमा कर ब्रह्माण्ड.भरपूर।
लौट आए जो पहले शूर।
उसी का होगा यह अधिकार।
देव वाहन पर हुए सवार।
मातु पितु के चक्कर कर सात।
गणेश जी ने दी सब को मात।
बिना वाहन पर हुए सवार।
प्रथम पूजित का है अधिकार।
गणेश चतुर्थी आई आज।
मुदित हों हे गणेश महाराज।
श्लोक ः
वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
हिंदी रूपांतरण
टेढ़ी सूँड महाकाया है कोटि सूर्य सम करें प्रकाश।
कारज मम सम्पन्न करें सब औ' विघ्नों का करें विनाश।।
-----रवि 'मौन'----
Excellent version
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