वृक्ष वही फलते हैं, जिन ने दर्द सहे पतझड़ के।
बूँद नहीं पानी की कोई, यह विज्ञान सिखाता।
मोती बनता वही सीप में जो कण तन में रड़के।
मित्र तुम्हारे दर्द बाँट लूँ खुशियों में हूँ शामिल।
रह न जाय कोई भी काँटा, तेरे तन में गड़ के।
आँधी आए किसी दिशा से बाँस झूमते रहते।
गिरते बूढ़े वृक्ष वही, जो फिर भी रहे अकड़ के।
'मौन' यही है एक प्रार्थना, जाऊँ चलते फिरते।
मृत्युदेव की राह न देखूँ, बिस्तर में सड़ सड़ के।
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