Monday, 8 November 2021

FAIZ AHMAD FAIZ.. TETRADS

वक़्फ़-ए-हिरमान-ओ-यास रहता है।
दिल है, अक्सर उदास रहता है।
तुम तो ग़म दे के भूल जाते हो। 
मुझ को अहसाँ का पास रहता है। 

Expecting nothing, it is bound. 
Often in sorrow, heart is found. 
You give sorrow, then forget. 
Your gratitude with me stays sound. 

रात यूँ दिल में तेरी खोई हुई याद आई। 
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए। 
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम।
जैसे बीमार को बेवजह क़रार आ जाए। 

Last night your lost memories came to cling. I 
As stealthily comes in desert, the spring. 
As in Sahara the wind just blows. 
As if a patient achieves solace in nothing.

मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है।
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैंने।
ज़बाँ पे मोहर लगी है तो क्या कि रख दी है। 
हर एक हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में ज़ुबाँ मैंने।

What if they snatched my pad 'n pen.
I' ve soaked in blood my fingers then.
Why worry, if they 've sealed my tongue.
My voice will be heard in  chains of den. 

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