वगर्ना दुनिया में रखा ही क्या है क्या रखिए ?
न इस तरह हो महबूब घर में आ न सके।
किसी के वास्ते दरवाज़ा दिल का वा रखिए।
न जाने क्या कहा काँटों ने आज शबनम से ?
ये कह रहे हैं गुल हम से न वास्ता रखिए।
तुम्हारी याद के ज़ख़्मों ने जब भी दस्तक दी।
यही दुआ की कि ज़ारी ये सिलसिला रखिए।
वो जिस ने डाल दीं बाहें गले में दुश्मन के। ख़बर तो आती रहे इतना वास्ता रखिए।
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