Saturday, 13 November 2021

GHAZAL.. RAVI MAUN.. LAFZ HI HAIN BAHUT SATAANE KO

 लफ़्ज़ ही हैं बहुत सताने को।
और क्या चाहिए जलाने को ? 

और कुछ देर बाद चहकेंगी। 
पेड़ पर फल हैं बहुत खाने को। 

तोड़ दी, लूट ली, जला डाली।
आप आए हैं अब मनाने को। 

मेरे महबूब की अदा है ये। 
कुछ नया चाहिए बहाने को। 

मंच से ज़हर उगलने वालो। 
बख़्श भी दीजिए ज़माने को। 

वोट माँगे थे जिनके घर जा कर। 
जाएँ दुखड़ा किसे सुनाने को ? 

लुट गई जिनकी आबरू उन को।
'मौन' क्या रह गया बचाने को ? 

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