ये जनम हो कि हो जनम अगला ।
रूह में हो मेरी धड़कन में हो ।
मैं तो शायर हूँ मौन इक पगला।
फूल ख़ुशबू बिखरते हर सू।
और काँटे कभी नहीं खिलते।
फिर भी काँटों की मेहरबानी है।
वर्ना ये फूल याँ नहीं मिलते।
रेत पर पाँव के निशानों को।
आने वाली लहर मिटा देगी।
और फिर कौन कह सकेगा यह।
मैं भी इस रास्ते से गुज़रा हूँ।
मेरे मालिक मिरी ख़ता तो बता ।
किस गुनह की मुझे सज़ा दी थी।
प्यार जब था न मेरी क़िस्मत में ।
किसलिए ज़िन्दगी अता की थी ।
मिट गई ख़ुशबू तिरे ख़त से मगर 'मौन' उसे।
छूके दिल झूम उठा, नैन मेरे भर आए।
नींद आँखों से उड़ गई मेरी।
बूँद बारिश की शोर करती हैं।
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