Tuesday, 9 November 2021

RAVI MAUN KI MADHUSHALA.. VIRAH VEDNA MARMANTAK...

विरह वेदना मर्मांतक है, दधक रही है यह ज्वाला।
अपने होते तो न छोड़ते, कहती है साकीबाला।
अपने दुःख पहुँचाते हैं तो पीड़ा दुगुनी होती है। 
शायद मदिरा से बुझ जाए, आया हूँ मैं मधुशाला। 

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