Wednesday, 16 February 2022

bashir

Bashir Badr's Photo'

बशीर बद्र

1935 | भोपालभारत

बशीर बद्र के शेर

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FAVORITE

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

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जी भर के देखा कुछ बात की

बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

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ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

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कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

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बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना

जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता

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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा हों

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यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं

मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे

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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती मिला

अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी मिला

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हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं

उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

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मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी

किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

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कोई हाथ भी मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से

ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

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तुम मोहब्बत को खेल कहते हो

हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली

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ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने

बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही मिला

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तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा

यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो

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हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा

जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे

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हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं

दिल हमेशा उदास रहता है

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सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

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इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी

लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे

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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है

ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

  • टैग्ज़ : ग़म 
    और 2 अन्य
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पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला

मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

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मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना

यक़ीं जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है

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शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

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दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम

तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे

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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

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उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में

फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

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घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे

बहुत तलाश किया कोई आदमी मिला

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तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा

मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा

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वो चेहरा किताबी रहा सामने

बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई

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भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले

कभी हमारे क़दम बढ़े कभी तुम्हारी झिजक गई

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अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है

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भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली

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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

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सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें

आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत

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इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं

तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं

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अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

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ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है

रहे सामने और दिखाई दे

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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

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    मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है

    कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता

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    इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं

    उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं

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      आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है

      बेवफ़ाई कभी कभी करना

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      कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें

      उदास होने का कोई सबब नहीं होता

      • टैग्ज़ : आँख 
        और 1 अन्य
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      है अजीब शहर की ज़िंदगी सफ़र रहा क़याम है

      कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है

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      तुम होश में हो हम होश में हैं

      चलो मय-कदे में वहीं बात होगी

      • टैग्ज़ : नशा 
        और 1 अन्य
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      गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है

      मुद्दतों सामना नहीं होता

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        बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम

        मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है

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        एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला

        जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं

        • टैग्ज़ : औरत 
          और 1 अन्य
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        जी बहुत चाहता है सच बोलें

        क्या करें हौसला नहीं होता

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        कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए

        तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए

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        महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से

        ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है

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        दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है

        जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है

        • टैग्ज़ : दिल 
          और 1 अन्य
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        हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में

        जो ज़िंदगी को जीत ले वो ज़िंदगी का मर्द है

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        महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए

        लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

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          मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ

          वो जो एक रात को आसमाँ का निज़ाम दे मिरे हाथ में

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            ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है

            कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे

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            वो अब वहाँ है जहाँ रास्ते नहीं जाते

            मैं जिस के साथ यहाँ पिछले साल आया था

            पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह

            बच्चों में कोई बात हमारी आएगी

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              दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है

              अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

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              कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें

              शायद मेरे दिल की धड़कन चुनी है इन दीवारों में

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              जिस को देखो मिरे माथे की तरफ़ देखता है

              दर्द होता है कहाँ और कहाँ रौशन है

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                ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए

                जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है

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                  फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है

                  इस में तिरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है

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                    यूँ तरस खा के पूछो अहवाल

                    तीर सीने पे लगा हो जैसे

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                    सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर

                    कहानियों के पुर-असरार लब तुम्हारी तरह

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                      सुना के कोई कहानी हमें सुलाती थी

                      दुआओं जैसी बड़े पान-दान की ख़ुशबू

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                      RECITATION

                      aah ko chahiye ek umr asar hote takSHAMSUR RAHMAN FARUQI

                      No comments:

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