Friday, 11 February 2022

मुक्त पंचपदी.... रवि मौन

सच उगलने को हुआ मन अग्रसर जब।
हाथ पकड़ा तब क़लम का बंधुओं ने। 
अश्रु अविरल बह रहे हैं, मैं चकित हूँ।
 धुल रहे हैं पाप पश्चाताप से जब।
क्या कला मुखरित न हो कर 'मौन' होगी? 

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