Sunday, 20 February 2022

GHAZAL........ RAVI MAUN... ITNI SI DAASTAAN HAI HAMARE NIBAAH KI.......

इतनी सी दास्ताँ है हमारे निबाह की।
हमने न आह की कभी उसने न वाह की। 

थे ग़ैर भी शरीक हमारे अज़ीज़ बन। 
हमने न क़द्र की कभी उनकी सलाह की।

दामन पे गुल-ओ-ख़ार का हक़ एक सा ही है।
किस वास्ते बशर ने न की सम्त चाह की। 

हर शख़्स के क़रीब चली आ रही है मौत। जिसने न फ़िक्र की कभी भी रस्म-ओ-राह की।

कहते हो अपनी बात भी, रहते हो मगर 'मौन' ।
हमको न चाह ऐसे किसी ख़ैरख़्वाह की। 


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