सूरज भी तो ढलता है चन्दा के लिए।
........ काव्य रूप रवि मौन......
जो कहने का साहस ना हो, लिख लेता हूँ।
बौझ हृदय का कुछ कुछ हल्का हो जाता है।..... रवि मौन
सच कहा है, दो बदन इक जान हैं हम ऐ सनम ।
तेरे सीने पर बने हैं ज़ख़्म जो नाखून से ।
वो पराई नार के हाथों हुए मेरे नहीं।
क्यों मुझे पहुँचा रहे हैं दुःख, न कुछ इस में भरम।
सच कहा है, दो बदन इक जान हैं हम ऐ सनम ।.... रवि मौन.......
सुंदर, चंचल, प्यारी बिटिया, जब इस घर में आई।
ग़म ग़ैरों के हुए, ख़ुशी अपने हिस्से में आई।
कौन साथ देता है जग में, सब कहने की बातें हैं ।
जीवन- संध्या आते - आते, जीवन-साथी चला गया।..... रवि मौन.....
कैसे तुम को अपने मन की व्यथा
सुनाऊँ ?
सब कुछ, सब से, कह देते हो, तुम भी
ना !.... काव्य रूप ..... रवि मौन.......
देवकी- गर्भ से जन्मे श्रीहरि, औ' जसुदा-घर लालन।
जीव-ताप पूतना का हरें औ' गोवर्धन- धारण।
कंस मार, कौरव समाप्त कर, कुंतिसुतों का पालन।
युद्ध-भूमि में भगवद्गीता कहते श्री नारायण।.
.... हिन्दी पद्यानुवाद... रवि मौन.....
प्रथम राम ने किया वन-गमन, सोने का मृग मारा।
वैदेही का हरण, जटायु - मरण, सुग्रीव उबारा।
वालि-मरण, सागर-तरण, लंक-पुरी को जारा।
रावण - कुम्भकर्ण मारे, यह है रामायण - सारा।
..... हिन्दी पद्यानुवाद..... रवि मौन....
कैसे मन के भाव छुपा हम लेते हैं।
मन में है कुछ और, बता कुछ देते हैं।
शब्दों को कहने की कारीगरी नहीं।
अपने को भी, यह ही समझा लेते हैं।
मैं तेरी हूँ, सीने से लग, बोली थी।
माला दूजे को ही पहना देते हैं।
अपना कर लेने की इतनी होड़ लगी।
पूरा ख़त्म, दूसरे को कर देते हैं।
दुनिया बस्ती विस्थापित लोगों की है।
दिल में किस को जगह मगर हम देते हैं ?
आज अर्थ पर सारी दुनिया आश्रित है।
अर्थ मगर कुछ और लगा हम लेते हैं।
बड़ी बड़ी बातें करते हो क्यों तुम 'मौन'
तुम को आईना दिखला हम देते हैं !
.... रवि मौन..
नज़रों ने नज़रबंद किया, ख़्वाब में तुझे ।
दिल ने नज़र उतार ली, नज़राना दे दिया।
......... रवि मौन.........
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