Thursday, 17 March 2022

GHAZAL.. FARHAT AHSAAS..... HAR GALII KOOCHE MEN RONE KI SADAA MERI HAI....

हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है 
शहर में जो भी हुआ है वो ख़ता मेरी है 

In every lane, weeping sound is my cry. 
What's happening in the city, at fault am I. 

ये जो है ख़ाक का इक ढेर बदन है मेरा 
वो जो उड़ती हुई फिरती है क़बा मेरी है 

This heap of dust is my own body. 
It's my dress that you see flying high. 

वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा 
ये जो तन्हाई बरसती है सज़ा मेरी है 

My sentence spreads as the silence here. 
It's my  deed,whose noise sounds high. 

मैं न चाहूँ तो न खिल पाए कहीं एक भी फूल 
बाग़ तेरा है मगर बाद-ए-सबा मेरी है 

If I don't want, nowhere 'll flower  bloom. 
My breeze blows in your garden with a sigh. 

एक टूटी हुई कश्ती सा बना बैठा हूँ 
न ये मिट्टी न ये पानी न हवा मेरी है

Neither earth nor water nor air is mine. 
Like a broken ship, I am sitting near by. 



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