Monday, 28 March 2022

RAVI MAUN... TETRADS........

निंदिया क्यूँ न आजकल आती ?
क्या प्रियवर की याद सताती ?
 याद, नींद तो सौतन सी हैं।
एक रहे, दूजी क्यूँ आती ?

मैं तो रंग रँगी साजन के। 
वो मालिक हैं मेरे मन के। 
नींद नहीं आती, ना आए।
साजन मन में रहें समाए। 

कौन याद आता है ? कहिए।
ऐसे गुमसुम से मत रहिए। 
याद आएँ बाहों के घेरे।
कहिए, क्या है बस में मेरे ?

कल यह पूछ रही थी बहना। 
क्यों गुमसुम हो ? सचमुच कहना। 
क्या जीजू की याद सताती ? 
कैसे, मैं सच उसे बताती ? 

वो घर में सब को कह देती। 
हँस - हँस कर फिर ताने देती। 
दीदी ! अपने घर आई हो। 
मगर याद उनकी लाई हो। 

मैं क्या कुछ भी नहीं तुम्हारी ? 
तू उनकी सारी की सारी। 
मैं जीजू के साथ लड़ूँगी। 
सारी  ना ले जाने दूँगी। 

साली हूँ, कुछ मान रखेंगे। 
मेरे सम्मुख ना कह देंगे। 
झुठ कह रहे हैं, मैं जानूँ। 
मर्दों को कुछ मैं भी जानूँ ! 

हे भगवन् ! क्या बोल गई मैं ? 
किस प्रवाह में डोल गई मैं ? 
जीजू ! कोई बात नहीं है। 
नैनों में बरसात नहीं है। 

तुम जानो या जीजी जाने। 
मैं क्यों तुम्हें दे रही ताने ? 
दीदी का भी हाल यही है। 
पर क्या उचित सवाल नहीं है ? 

इतने दिन के बाद मिले हैं। 
कुछ यादों के कँवल खिले हैं। 
बिसरी, वो बातें बचपन की। 
क्यों न कहें हम अपने मन की ? 

 मन अधिकार - क्षेत्र दूजे का ! 
यही लड़ाई है जीजू से है। 
कुछ तो हक़ मेरा बहना पर ? 
यह भरपाई जीजू से है ? 

मन की पूरी बात कहूँगी। 
जो बोलोगे, वो सुन लूँगी। 
नहीं मगर चुप रहने वाली। 
तुम जीजू हो, तो मैं साली। 

[ Chaudhri: कब मैं लिखता तुझ को पाती ? 
नहीं याद कब तेरी आती ? 
मेरे जन्म - जन्म के साथी !
याद ख़ुशी भी, ग़म भी लाती ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48 Ravindra Kumar Chaudhri: किसी रास्ते, किसी मोड़ पर।
जहाँ गए तुम मुझे छोड़ कर।
मैं देखूँगा कब तक रस्ता ?
लिख जाते तुम पृष्ठ मोड़ कर !
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: नहीं कँटीला, पथ जीवन का।
साथी हो गर, अपने मन का।
नव-विवाहिता, पीहर आई।
पूजन करती, ध्यान सजन का ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मेरे साथी ! भोले-भाले।
हर विपदा से तुझे संभाले।
याद तुम्हारी जब-जब आती।
शर्माती मैं, कभी लजाती !
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: कैसे टूटे, ध्यान सजन का ?
यह तो मोती है, जीवन का।
माता ! मैं कैसे समझाऊँ ?
याद आई, जब कंगन खनका ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: अच्छा है, ऋतु है गर्मी की।
यही बात है कुछ नर्मी की।
पूजन, यदि सर्दी में होता। 
नव-विवाहितों का मन रोता !
..... रवि मौन: अब भी घर से मोह बहुत है।
मन में मगर विछोह बहुत है।
नव-विवाहिता के, मानस पर।
पूजन का विद्रोह, बहुत है।
..... रवि मौन.....

[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मैं राह बनाता हूँ , तू राह दिखाता जा।
दुनिया में किसी को तो, तू अपना बनाता जा। 
ये रीत जगत की है, ये प्रीत जगत की है।
जो भूल गया तुझको, तू उसको भुलाता जा।
.. ... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मैं आज किसी निर्जन जंगल में नहीं आया।
इक मित्र के घर बैठा, इक मित्र के घर आया।
जिस जगह मिले साथी, कुछ अपने पुराने से।
गूँजे वहीं ठहाके, मिल जुल के वहीं खाया।
...... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: किसे फ़िक्र है, कल क्या होगा ?
जो भी होगा, अच्छा होगा।
यह तो फल है, किसी जन्म का।
इस से प्यारा, भ्रम क्या होगा ?
...... रवि मौन.......
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मैंने जो कुछ बोया, काटा।
इसी तरह, यह जीवन काटा।
दोष, दोश पर औरों के हों।
क्या पाया था और क्या बाँटा ?
...... रवि मौन......
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: किस किस के सम्मुख रोएगा ?
कौन घाव तेरे धोएगा ?
अपने जब अपनापन खोएँ।
पथ में फूल मित्र बोएगा।
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मित्र ! सदा ही तेरी जय हो।
जीवन तेरा, मंगलमय हो।
जो भी कंटक, पथ में आएँ।
मुझे सामने, अपने पाएँ।
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: कब मैं लिखता तुझ को पाती ? 
नहीं याद कब तेरी आती ? 
मेरे जन्म - जन्म के साथी !
याद ख़ुशी भी, ग़म भी लाती ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: किसी रास्ते, किसी मोड़ पर।
जहाँ गए तुम मुझे छोड़ कर।
मैं देखूँगा कब तक रस्ता ?
लिख जाते तुम पृष्ठ मोड़ कर !
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: नहीं कँटीला, पथ जीवन का।
साथी हो गर, अपने मन का।
नव-विवाहिता, पीहर आई।
पूजन करती, ध्यान सजन का ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: मेरे साथी ! भोले-भाले।
हर विपदा से तुझे संभाले।
याद तुम्हारी जब-जब आती।
शर्माती मैं, कभी लजाती !
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: कैसे टूटे, ध्यान सजन का ?
यह तो मोती है, जीवन का।
माता ! मैं कैसे समझाऊँ ?
याद आई, जब कंगन खनका ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: अच्छा है, ऋतु है गर्मी की।
यही बात है कुछ नर्मी की।
पूजन, यदि सर्दी में होता। 
नव-विवाहितों का मन रोता !
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: अब भी घर से मोह बहुत है।
मन में मगर विछोह बहुत है।
नव-विवाहिता के, मानस पर।
पूजन का विद्रोह, बहुत है।
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: माँ से मिलने का मन भी था।
लेकिन हृदयांगन में पी था।
इतनी जल्दी पूजन आया ? 
बालम पूरे बदन समाया ! 
..... रवि मौन.....
[28/03, 09:48] Ravindra Kumar Chaudhri: अभी नाक में महक तुम्हारी।
अभी हृदय में चहक तुम्हारी।
पूजन ! तुम्हें अभी आना था ?
यूँ दोनों को तरसाना था ?
..... रवि मौन.....



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