Saturday, 2 April 2022

[02/04, 05:44] 

 पतझड़ बिन आते नहीं नूतन,चिकने पात।
कठिनाई, संघर्ष से, निखरे मानव जात।

काव्य रूप.. रवि मौन..

औरों को कर सकोगे तब ही इसे‌ प्रदान।
दाता ! तेरे पास में जब होगा सम्मान।

काव्य रूप.. रवि मौन..

[नाप जोख कर मैंने अपनी अंगुली देखी।
पाया अ सम, तभी हरि तेरी रचना देखी।

काव्य रूप.. रवि मौन..

[02/04, 03:39]

 कल किसने देखा है, कहिए।
आज सत्य है,उस पर रहिए।
यही बात कह रही अमन से।
पर वो सुनता है बे मन से।
..... रवि मौन…..
[02/04, 03:47]

 पहले सब सुनते थे मेरी।
मात-पिता गृह की यह फेरी।
फेरी क्यों अंखियां साजन ने ?
कैसी हलचल मेरे मन में ?
 ‌
..... रवि मौन.....
[02/04, 03:54] 

 अपने मन की कहना हक़ है।
क्या नारी का सहना हक़ है?
प्रेम नदी में बहना हक़ है।
बहना से छुप रहना हक़ है।
..... रवि मौन.....
[02/04, 03:59] 

 बहना, सब से सब कह देगी।
वह न अमन को भी छोड़ेगी।
छेड़ेगी, जब जी चाहेगा।
जी उसका जब तब चाहेगा।
..... रवि मौन.....
[02/04, 04:06]

 मैं पगली हूं,वो पगली है।
प्रेम राह पतली सी गली है।
 मैं ‌औ' तुम हो, साथ राह में।
फिर किसकी परवाह चाह में ?
..... रवि मौन.....

[02/04, 04:14] 

 चाह, हृदय में ‌ बस तेरी है।
जगत ,युद्ध की रणभेरी है।
साथ मिले जब, मुझे सजन का।
हम कर लेंगे, अपने मन का।
..... रवि मौन.....

[02/04, 04:20] 

मन की कैसी बात चलाई ?
मन को सब कहते हरजाई।
शब्द, मन अमन हैं सौतेले।
किसे नकारे,किस से बोले ?

..... रवि मौन.....
[02/04, 04:25

्बोले से ही ,सुनते साजन।
इसे‌ समझ ले, ऐ मेरे मन।
तब तब बुद्धि तेरी‌ भरमाती।
जब जब उनकी याद सताती।hi
.. ‌... रवि मौन.....
[02/04, 04:33] 

 सता रहे क्यों मुझको साजन ?
मैं तेरी, तुम मेरे साजन।
बहुत गर्म है,लू चलती है।
बस आंखों में ही है सावन !
..... रवि मौन.....
[02/04, 04:42] 

सावन के‌ जब पड़ते झूले।
देह ,संग झूले के झूले।
अभी देर पी  के आने में।
पीहर से पी-घर जाने में।

..... रवि मौन.....

[02/04, 04:51] 

पीहर से पी,हर कर लाए।
अब न याद पीहर की आए।
चोर बसा है मेरे मन में।
और मगन हूं मैं,साजन में।
..... रवि मौन...

5.4. 03.30

देश भी मेरा, मेरा धर्म।
इसी निमित्त करूँ सब कर्म।
चाहे जग समझे, न समझे।
 हिंदू समझें इसका मर्म। 

..... रवि मौन..... 

मर्माहत है देश हमारा। 
सदियों से ही रहा बिचारा। 
अब तो गर्व सनातन पर कर। 
इस पर ही जी, इस पर ही मर। 

..... रवि मौन..... 

ये नेता तो अभिनेता हैं। 
 स्वयम् भाग्य भी लिख लेते हैं। 
जनता पर जो कुछ भी बीते। 
अपनी झोली भर लेते हैं। 

..... रवि मौन..... 


जब मिलती सुविधाएँ इनको। 
क्या कोई सांसद कहता है ? 
बस भी करो, न और अधिक लो। 
जनता का पैसा बहता है। 

..... रवि मौन..... 

कई पदों से मिलती पैंशन। 
पक्ष विपक्ष सभी मिल जाते। 
जब भी हों निज हित की बातें। 
सारे एक साथ हो जाते। 

..... रवि मौन..... 

इन्हें भूल जाते सब वादे। 
दीन हीन को जो दे डाले। 
वोट दे दिया है उन ने तो। 
विपदा अपनी आप सम्भाले। 

..... रवि मौन..... 

ये दे दूँगा, वो दे देंगे। 
कुछ तो अपनी पूँजी से दो। 
कर दाताओं के पैसे से। 
देकर, श्रेय स्वयं का ले लो। 

..... रवि मौन..... 

मुफ़्त नहीं कुछ भी मिलता है। 
चाहे बिजली हो या पानी। 
करदाताओं का पैसा है। 
जिस से अपनी शान बखानी। 

..... रवि मौन..... 

माल तुम्हारे पास बहुत है । 
कई पीढ़ियों तलक रहेगा। 
उस में से भी कुछ तो दे दो। 
देश पुण्य की कथा कहेगा। 

..... रवि मौन..... 

पर तुमने लेना सीखा है।
 देने की सुध जब भी आई। 
करदाताओं का पैसा ही।
 तुम को सदा पड़ा दिखलाई। 

..... रवि मौन.....

08. 04 . 04. 22

हे हरि ! तुम हो दीनाधार।
मैं  मूरख जनमों का, पर अब गही तेरी पतवार।
अब तो यह है तुम पर स्वामी, कैसे हूँगा पार।
चाहे पार लगाएँ साँवरा, या छोड़ें मँझधार।
 तुम पर ही छोड़ा है,तो मैं कैसे करूँ विचार।
हरि पर रख विश्वास बावरे, हो जाएगा पार।

.. . रवि मौन.....

08. 04..06. 11 

ग़लत लोगों से जो कीं उम्मीद, उससे आधे दुःख।
शक किए जो सच्चे लोगों पर, उसी से आधे दुःख।
गर न हो उम्मीद और शक ज़िन्दगी के भाल पर।
सारा जीवन ख़ुश रहोगे, छोटी सी इस चाल पर।

काव्य रूप.. रवि मौन..

[09/04, 04. 01
क्या लिखिए, लिखने को क्या है ?
पूर्ण जगत ही तो मिथ्या है। 
हरि से जब तक नेह न लागा। 
सारा जीवन व्यर्थ गया है। 

रवि मौन 

कौन सुनेगा कथा तुम्हारी ?
 कौन सुनेगा व्यथा तुम्हारी ? 
जो कहना है, हरि सुन लेंगे। 
आगे बढ़ कर, कर गह लेंगे। 

..... रवि मौन.....
[09/04, 04. 07
जब हरि ने कर गहा तुम्हारा।
सारा जगत लगे बेचारा।
अब फिर इसकी चाह किसे है ?
अब जग की परवाह किसे है ?

..... रवि मौन.....
[09/04, 04:12
हरि का वरद हस्त है जब तक।
यह मन तेरा मस्त है तब तक।
इसको चिंता नहीं सताती।
याद न इसको जग की आती।

..... रवि मौन.....

हरि के चरणन में मन लागा।
अब चिंता की बात नहीं है, अब मैं नहीं अभागा।
कोई तुलना नहीं किसी से, प्रीति राह पग पागा।
जूठन राम लला की खाने, मैं जन्मों का कागा।
मोह बंधनों में सुषुप्त था, राम-कृपा से जागा।
हरि का वरद-हस्त है सर पर, सोने बीच सुहागा।

..... रवि मौन.....

13 04 /03 37

मुनि मतंग का समय आ गया, शबरी को समझाया।
मैं तो चला अन्य लोकों में यह तन हुआ पराया।
किंतु तुम यहाँ रहना, इस पथ पर आएँगे राम।
उन्हें मिलाना है वानर दलसे, यह तेरा काम।
इस पर्वत पर ही रहता है सूर्य पुत्र सुग्रीव।
है हनुमान वहीं पर जो होगा भविष्य की नींव।
वालि न मार सके उस को, मैंने दे डाला श्राप।
इस पर्वत पर आ न सके रक्षा का था संताप। 
बनें मित्र सुग्रीव और रघुकुल भूषण श्रीराम।
तो आने वाले भविष्य का सुंदर हो परिणाम।

..... रवि मौन.....

देखने के तेरे अंदाज़ निराले हैं क्यों ?
अधखुले नैन तेरे मय के पियाले हैं क्यों ?
यूँ अचानक ही खुले बंद हुए तेरे नयन। 
यूँ लगे जैसे कि जंगल में ग़ज़ाले हैं, क्यों?
13.7.16....10.45  रात्रि

कव्वा बोला काँव काँव। बिल्ली बोली म्याँव म्याँव। 
बोला गदहा ढैंचू ढैंचू। धोबी कहे कान मैं खेंचूँ। 
सीधे-सीधे घर चल आज। करने मुझको कितने काज। 
तेरा दाना-पानी डालूँ। फिर मैं भी दो रोटी खालूँ। 
घर वाली से करलूँ प्यार। चाहे हो थोड़ी तकरार। 
हम तुम करते कितना काम। ले अपने मालिक का नाम। 
इससे चलता घर संसार। पर न मने कोई त्योहार।
पास गाँव में भोला के घर। देखा है एक लड़का जाकर। 
मुन्नी की है बात चलाई। इसी महीने लगी सगाई। 
शादी में तुझ को दे दूँगा। छोटू को पालूँ पोसूँगा। 
छः महने में काम करेगा। तेरे कुल का नाम करेगा।
ठाकुर के घर कर मज़दूरी। करूँ रक़म शादी की पूरी। 
वर्ना मेरा लड़का देगा। ठाकुर पैसे पूरे लेगा। 
मैंने भर बाप का कर्ज़। इसे समझ कर अपना फ़र्ज़। 
कब दहेज का भूत भगेगा ? कब मेरा ये देश जगेगा ?
11.10.16...5.30 शाम

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