निंदिया ! संग सजन के आजा।
वर्ना जिधर तेरे मन में, जा।
बिछुड़ी रह, तू भी साजन सम।
बन्द मिलें उन बिना, नयन मम।
..... रवि मौन.....
कल तक इच्छा थी, तू आए।
जब जाना, बलमा नहीं आए।
कैसे तुझ को गले लगाऊँ ?
निंदिया ! उनका स्थान दिखाऊँ ?
..... रवि मौन.....
मुझे देखना, रूठे कब तक ?
साँस मेरी चलती है जब तक !
निर्मोही ! तब तक मत आना।
चिंता का, बस बिंदु हटाना !
..... रवि मौन.....
नैनम् को न एनम् , दिखना !
अर्थ शब्द का जी भर चखना।
मैं आत्मा हूँ, तन तेरा है।
मुझ से लेले, जो तेरा है !
..... रवि मौन.....
किसे सताएगा फिर आकर ?
अश्रु, आँख में किसके पाकर ?
तू, यूँ ही मुस्करा सकेगा ?
किसे, हृदय से लगा सकेगा ?
..... रवि मौन.....
जो तेरे मन में है, कर ले।
अधर, अ धर ही मिरे रहेंगे।
किस को अपनी व्यथा सुनाऊँ ?
सुन लूँगी, जो लोग कहेंगे !
..... रवि मौन.....
कर्ण न रण से कभी भगेगा !
प्राण त्याग देगा, न सुनेगा।
सुनी न माँ की, ना भगवन् की।
सुनी मित्र की, या फिर मन की !
..... रवि मौन.....
तुम मेरे हो, हाँ, यह सच है।
किंतु आयु ही देह-कवच है।
इसे बीतने देने का फल।
भोगेंगे हम दोनों प्रतिपल।
..... रवि मौन.....
... एक भजन.........
[01/04, 04:52]
भक्त भगवान को भूल जाएँ, भले।
उनको भगवन् कभी भी भुलाते नहीं।
कब से नेहा लगाए हुआ हूँ, हरि।
पास अपने, मुझे क्यों बुलाते नहीं ?
आज सोचा है, पूजन करूँगा तेरा।
किस तरह तुम भला याद आते नहीं ?
कोई विधि जानता ही नहीं मैं, विधि।
बस सहज प्रेम है, कैसे आते नहीं ?
.
मुझको दुनिया से क्या काम है, ये बता ?
मन में तू आ बसा, क्यों बसाते नहीं ?
जाने कैसी लगन, यह लगी है हरि ?
अब तो सुख-दुःख जगत के, सताते नहीं।
मन से करले मनन, तू रहेगा मगन।
दर पे दर्शन दिखाने, वो आते यहीं।
..... रवि मौन.....
23 03.04.36.
लंबी लंबी रातें हैं। लंबी-लंबी बातें हैं।
दुनिया से मत डर जाना।
इसकी अपनी बातें हैं।
मैं तेरा, तुम मेरे हो। ये ही प्यारी बातें हैं।
परिवारों की भली कही।
इनकी अपनी बातें हैं।
तुमने दुनिया देखी है।
इसकी छोटी बातें हैं।
जब तक रहे अकेले तुम।
डरने ही की बातें हैं।
ताक़त मिल रहने में है।
बाक़ी केवल बातें हैं।
झुंड शेर पर भी भारी !
यह जंगल की बातें हैं ?
किसने तुम को बहकाया ?
क्या बचकाना बातें हैं ?
ये जग की सच्चाई है।
प्यार से बड़ी आँतें हैं !
कब तक डर कर भागोगे ?
सभी ओर तो घातें हैं !
अनजाने से लगते हो।
अपनों की सी बातें हैं।
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