Monday, 2 May 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL.. KOI CHIRAAGH NAHIN HAI MAGAR UJAALA HAI.......

कोई चिराग़ नहीं है मगर उजाला है।
अजीब रात है सूरज निकलने वाला है। 

There's no lamp, but light in guile. 
Night is strange, sun 'll rise in a while.

अजब सी आग है इस बे-लिबास पत्थर पर।
पहाड़ पर तिरी बरसात का दुशाला है। 

Fire is strange on this uncovered stone.
Over mountain, your rain shawl does smile. 

अजीब लहजा है दुश्मन की मुस्कुराहट का। 
मुझे गिराया कहाँ है मुझे सँभाला है। 

Strange is the style of my enemy 's smile.
Didn't throw, kept me lifted all the while. 

निकल के पास की मस्जिद से एक बच्चे ने।
फ़साद में जली मूरत पे हार डाला है। 

Coming out of a nearby mosque, one child. 
Garlanded riot burnt statue in a while. 

तमाम वादी-ओ-सहरा में आग रौशन है।
मुझे ख़िज़ाँ के इन्हीं मौसमों ने पाला है। 

In valleys 'n deserts entire, glows only this fire.
I have been reared by autumn all this while. 

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