Wednesday, 4 May 2022

केवट हरि चरणाँ नैं धोवै।

केवट हरि चरणाँ नैं धोवै ।

जिन चरणाँ का दरसन नैं मुनि करैं तपस्या भारी।
छूताँ ही पत्थर सैं निकली गौतम ऋषि की नारी।
उन चरणाँ नैं धोणै को यो मौको कैयाँ खोवै। 
केवट हरि चरणाँ नैं धोवै ।

नाव काठ की पत्थर भी छूयाँ नारी हो जाय।
पैल्याँ धोल्यूँ इन चरणाँ नैं फिर द्यूँ पार कराय। 
हरि हँस कहैं करो कुछ जिससैं नाव नार नहीं होवै। 
केवट हरि चरणाँ नैं धोवै ।

गंगा निकली हरि चरणाँ सैं बेद पुराण बतावै। 
फिर सैं छू कर धन्य हो ही मन मैं क्यूँ सुकचावै। 
प्रेम मगन है केवट आँख्याँ को जल पैर भिगोवै। 
केवट हरि चरणाँ नैं धोवै ।

देख देख कै काडै जितणा गड़्या राह मैं सूल।
निरखै हरसै हरसै निरखै हुयो भाग्य अनुकूल। 
फिर कब दरसन पाऊँगो मैं जब सोचै तो रोवै। 
केवट हरि चरणाँ नैं धोवै ।

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