Wednesday 18 May 2022

FARHAT EHSAAS.. GHAZAL.. HAR GALII KOOCHE MEN RONE KI SADAA MERI HAI....

हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है।
शहर में जो भी हुआ है वो ख़ता मेरी है। 

Mine is  crying sound in each lane and street. 
Mine is the fault in this city for every feat.

ये जो है ख़ाक का इक ढेर बदन मेरा है।
वो जो उड़ती हुई फिरती है क़बा मेरी है। 

It is this heap of dust, that is my body. 
That which is flying with the wind is my sheet.

ये जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा।
ये जो तन्हाई बरसती है सज़ा मेरी है। 

This ever expanding noise is my act. 
This raining solitude is my punishing heat. 

मैं जो चाहूँ तो न खिल पाए कहीं एक भी फूल। 
बाग़ तेरा है मगर बाद-ए-सबा मेरी है।

If I don't like, not a single flower will bloom. 
It's your garden, but my breeze is that you meet.

एक  टूटी हुई कश्ती सा बना बैठा हूँ। 
न ये मिट्टी न ये पानी न हवा मेरी है।

I am just seated like a broken down ship. 
Neither soil, nor water nor is mine the wind sheet. 

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